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धन्ना
॥ दोहा.॥ पंचाचार विचारधर, परिवृत बहु परिवार ॥ क्रिया कुशल विद्या बदल, रुज्ञचार्य गुणधार ॥१॥ चार साधु ते गबमें, सुविवेकी सुविख्यात ॥ दानादिक जिन धर्ममें, शोलनीक साहात ॥॥बंधुदत्त मुनिवर प्रथम, ज्ञानतणो नंमार ॥ षटदर्शनना शास्त्रनो, जाणे सकल विचार ॥३॥ वादलब्धियी विधिध परे, जीत्या तार्किक जोर ॥ जितकाशी जिनशासने, बिरुद वहे कवि मोर ॥॥ प्रनाकराख्य बीजो जलो, तपसी में शि सरदार ॥ मासखमणने पारणे, अविछिन्न व्यवहार ॥ ५॥ कनकावली रत्नावली, वजावली
विचित्र ॥ सिंहनीकीमित तप प्रमुख, आराधे सुप्रवित्र ॥६॥त्रीजो सोमिल नाम मुनि, निमित्तशास्त्रनो जाण ॥ कालत्रय वेत्ता निपुण, श्रुतज्ञानी सुप्रमाण ॥ ७॥ कालिक नामे | मुनिवरू, क्रियापात्र शुचि गात्र ॥ चोथो चिहुं गति टालवा, पाले प्रवचन मात ॥७॥ चारे
साधु शिरोमणी, रत्नत्रय नंमार ॥ पंचाश्रव दूरे करे, निर्मम निरहंकार ॥॥ गुण देखीने ? | जन सकल, करे सेवा सतकार ॥ मान दान मुनिवर प्रते, साधे विविध प्रकार ॥१०॥
॥ ढाल १६ मी. ॥ (श्री जिनशासन जग जयकारी.-ए देशी.) ___ रूशचार्य तो मुनिवर पूजा, देखीने बुख पावे रे ॥ महरथी मन एम विचारे, ए में हमें शो गुण नावे रे ॥ अणिख तजो रे, अशीख तजो रे ॥ अणिख की दुःख सहीए रे ।
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