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धन्नाण
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अवगुण मुजमें होटो, राजि परगुरा न सदू थई छोटो ॥ रा० ॥ राजि नित्य कलहो हुवे बहु साधे, राजि तिले लाज न रही मुज हाथे ॥रा० ॥ ६ ॥ यतः ॥ श्रगणितिय नासर वि का, पिल्लिऊंति नासर पका । कुट्टिऊंतित्र नासर नका, इबोलंतित्र नासर लका ॥ १ ॥ जावार्थ:- फरव्या विना विद्या नाश पामे, पीरुवा थक। प्रजा नाश पामे, बहु मार वार्या नाश पामे अने घणुं बोलवाथी लगा नाश पामे. ॥ १ ॥ राजि तव प्रालोची निज मनमें, राजि तव वास की यो ए वनमें ॥ रा० ॥ राजि निज पिंक जणी प्रतिपालूं, राजि मनथी नदवेगने टालूं ॥ ० ॥ ७ ॥ राजि सुली वाक्य ईशां नूपाले, राजि चिंते तव चित्त विचाले ॥० ॥ राजि देखो एह दुःखीयो दीसे, राजि एतो दुःख पामे बेरी से ॥०॥ ॥ राजि पि एह माहरो नपगारी, राजि मुज सेवा कीधी सारी ॥ रा० ॥ राजि अवसर लही जेह न चूके, राजि सनता पिएस नवि मूके ॥ ० ॥ ॥ राजि तेहनी जइए वलिहारी, राजि तस कीजे सेवा सारी ॥रा० ॥ राजि कीधा गुणने जे लोपे, राजि तेहने परमेश्वर कोपे ॥ ० ॥ १० ॥ राजि एले अन्न नदक मुज दीधो, राजि एणे जीवित कारज कीधो ॥ रा० ॥ राजि वली सुंदर स्थानक ग्रापी, राजि मुज सेवे बे गुणव्यापी ॥ रा० ॥ ११ ॥ राजि दवे एहने सुखीयो कीजे, राजि उपकृति गुण संजारीजे ॥ रा० ॥ राजि नर
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