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________________ शीतल गंयाये तिहां, राय करे विश्राम ॥६।। यतः ॥ सऊन आव्या प्राणा, मागे चार रतन ॥ वाणी पाणी सायरो, संपति सारु अन्न ॥२॥ अल्पन्नक्ति अवसर तणी, ते पण 8 | बहुली याय ॥ विण अवसर जे कीजिए, ते तो नावे दाय ॥ ७॥ ॥ ढाल १२ मी. ॥ (राजि मृगानयणीरी नागरी फूलो.-ए देशी.) __राजि नृप कहे तुं एकाकी, राजि किम रहे ने हां अहिकारी ॥ राजि किम विस-२ रेजी कहो नपगारी, राजि जेणे कीधी सेवा सारी, राजि नृप कहे तुं एकाकी ॥ ए आंक-3 दणी॥ राजि एणे वनमें एणे गमे, राजि इहां रहे ले कहे शे कामे ॥ राजि ॥१॥ राजि मृग मृगपति वलि मुनिवरने, राजि वलि विद्यासाधक नरने ॥ रा राजि पिण गृहवेसे है वनमें रहेवो, राजि एतो अचरिज कारण कहेवो ॥ रा॥२॥राजि तव बोल्यो पंकप्रिय वाणी, राजि सुण नूपति तु गुणखाणी ॥ रा०॥ राजि हुँतो नगरी अयोहानो वासी, रा जि कुनकार कला अन्न्यासी ॥राण॥३॥ राजि स्त्री पुत्रादिक ने बहुला, राजि माहरे तिहां 5 K कण सबला ॥रा०॥ राजि कोईना गुणवर्णन में न खमाये, राजि मुजश्री मौन न पाये राण॥॥ राजि कोई परगुण मुज संतलावे, राजि तो मुज शिर दूखण आवे । रा॥ राजि गुणवर्णन सुणतां टालूं , राजि नही तो निज शिर आस्फालूं ॥ रा॥५॥ राजि एह Jan Educat i onal For Personal and Private Use Only A ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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