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________________ धन्ना० २१ संक्लेश थकी पंकप्रिये, सुत वचन पिल प्रेरयो । वनमा कोई सरोवर तीरे, तृणगृह रच्यो सुनलेरो रे ॥ ० ॥ १३ ॥ अन्नादिक वस्त्रादिक प्रतिदिन, पुत्र पिताने पूरे ॥ तिहां रहे पंकप्रिय मन हरखे, चिंता बांकी दूरे रे ॥ ८० ॥ १४ ॥ महारथी जून पंकप्रिय ए, एकाकी रह्यो वनमें ॥ ढाल इग्यारमी जिन इम जांखे, मन्चर म धरो मनमें रे ॥ म० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ एक दिवस काकुस्थ नृप, परिवृत बहु परिवार ॥ आखेटक कार्यो गयो, वन गहने सुविचार ॥ १ ॥ बाण कबाले साचवी, नीलांबर घरी देह ॥ नृप मृगया करतो फिरे, पल काजे प्रति तेह ॥ २ ॥ यतः ॥ आर्यावृत्तम् ॥ मृग मीन सकनानां, तृण जल | संतोष विहित वृत्तिनां ॥ लुब्धक धीवर पिशुना, निष्कारण वैरिलो जगति ॥ १ ॥ नावार्थ:मृग तृणवके, माबलां जलवमे अने सजन पुरुषो संतोषवमे पोतानुं गुजरान चलावे बे; | तेम बतां तेमना अनुक्रमे पारधी, मी अने चामीयान विना कारणे जगत्मां वैरी बे. ॥ १ ॥ उष्णकाल प्रातप बहुल, नृपति सुकोमल काय ॥ कुधा तृषा श्रम प्रमुखथी, श्राकू ल व्याकूल थाय ॥ ३ ॥ सरोवर देखी सुनग, थावे जलने अर्थ । एहवे ते पंकप्रिये, नृप दीठों सामर्थ्य ॥ ४ ॥ जल आणी आमल घट्यो, अमृत सम अभिराम ॥ पारुल पुष्पा दिक श्रकी, वासित शीतल स्वाम ॥ ५ ॥ जोजन पिस जावे करी, दीधो नृपने ताम ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationmational न० १ २१ jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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