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________________ मेरे ॥म०॥७॥ पिण तिणमें ले एक अपलकण, गुण कोइनो नवि सांसे ॥ईर्ष्याये करी ने सहु जनना, गुण ते अवगुण नांसे रे॥म०॥॥ जो कोईनो गुण आवश्यपणाथी, सां नले तो शीर दूखे ॥ पांच मिले जो गुणना रागी, तो तेहशू अति रूसे रे॥म०॥णायतः॥ दपिशुन कषाय न परिहरे, जो कीजे सो लल्ल ॥ अंबा गिरिमने वसे, तो हि कषायणि गुल्ल । ॥२॥नावार्थ:-जो कदि सो सारां काम करीए, तो पण चामियो माणस कदापि कषाय त्याग करे नही. जेम आंबो पर्वत नपर वसे, तो पण तेनी गोटली तो कषायेली ने कषाये लीज रहे ॥२॥ जो वारे कोई सऊन थश्ने, तो निज शिर ?आस्फाले ॥ वास्यो केह नो न रहे पापी, क्रोधे तनु परजाले रे ॥म०॥१०॥ यतः॥आर्यावृत्तम् ॥ क्रोधःपरितालपकरः, सर्वस्योगकारकः क्रोधः॥ वैरानुषंग जनकः,क्रोधेन सूगति हर्ताः॥३॥ नावार्थः क्रोध परिताप नपजावनारो, सर्वने नईग करावनारो, वैरनुं अनुसंधान करनारो अने सुगतिने हरनारो .॥ ३ ॥ तव तस पुत्र विचारे चित्ते, तातने वन मूकीजे ॥ तो सहूना मनमें सुख थावे, गृहकार्यादिक कीजे रे ॥ म॥११॥श्म निश्चय करी तातने नांखे, तुमे हवे वनमां पधारो ॥ इष्टदेवतुं नाम जपीने, निज अवतार सुधारो रे ॥म ॥१॥ जन १ माथु कूटे. Jain Educatio n ational For Personal and Private Use Only W ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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