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________________ ॥ ढाल ११ मी.॥ (माला क्या डे रे.-ए देशी.) कहे धनसार ते त्रिण्य तनूजने, ए तुम वात में जाणी ॥ नाग्यहीनने कांई न सूके, नाग्यबले सुखखाणीरे ॥ मचर मूको रे ॥ मार्दवथी सुखवास, ते मत चूको रे ॥१॥ए है। आंकणी ॥ तुमने ए धनकुमर संगाथे, पूरव वेर को दीसे ॥ एहनो वचनादिक पिण तुम ने, न गमे विसवावीसे रे॥म०॥॥ यतः॥अनुष्टुब्वृत्तम्.॥ यं दृष्ट्रावाईते क्रोधः, स्ने । 5 हश्च परिहीयते ॥ सविज्ञेयो मनुष्येण, एष मे पूर्व वैरिकः ॥१॥नावार्थ:-जेने देखीने क्रोध वधे डे अने स्नेह घटे , ते उपरथी माणसे एम जाणवू के, जरूर आ पुरुष महारो पूवन्नवनो वैरी दशे.॥१॥ धन अर्जीने सयण संतोषां, कारज नत्तम कीधां ॥ मणिम &य नूषण मन गमतां, नोजाईने दीधारे॥म ॥३॥ ए निस्पृह निज कुलनो पोषक, सहुशुं हित बहु राखे । तुम विण सयल सयण ए सुतना, अह निशि गुण मुख नखे रे म॥४॥ महर मनमें अधिक धरते, पंकप्रिय पुःख पाम्यो ॥ ते दृष्टांत सुणो एक चित्ते, तस न श्रयो को कामो रे ॥ म०॥५॥ नयरी अयोझ कोशल देशे, नृप काकुस्थ सोहावे ॥ न्यायवंत दाने अति शूरो, राम समान कहावे रे ॥म०॥६॥ ते नगरीमें एक है प्रजापति, पंकप्रिय शे नामे ॥ स्त्री पुत्रादिक परिकर परिघल, तिणे करी सवि सुख पा 456-4 946 Jain Educa t ional For Personal and Private Use Only L ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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