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________________ ********** थश्ये एणे टाणे, राजि तो यश जगमें सहु जाणे ॥रा०॥ १२॥ यतः॥ आयोवृत्तम्.॥ दो पुरिसे धरणी धरे, अहवा दोएहिं धारिया धरणी ॥ नवयारे जस्स मई, नवयारं जो न नलवई ॥॥नावार्थ:-जगत्ने विषे बे पुरुषो धरतीने धारण करनारा , अथवा बे पुरु दषोवमे पृथ्वी धारण कराय . तेमां एक तो ए के, जेनी नपकार करवानी बुद्धि ते अने। बीजो जे उपकार नलवे नही ते; एंटले करेला नपकारनो बदलो वाले ते. ॥॥ राजि श्म ? चित्त चिंती नृप बोले, राजि पंकप्रियंथी निज दिल खोले ॥रा ॥ राजि तुं साचो बंधव ४ महारो, राजि तिण माटे नगर पधारो ॥रा०॥१३॥ राजि तुने असन वसन बहु देशू, राजि वली नगति विशेषे करेशू ॥रा०॥राजि रहेवाने सदन सजोमां, राजि देशृं बहु हा-16) थी घोमा ॥रा॥१५॥ राजि मुह मांगी लखमी लेज्यो, राजि मुज पासे बेग रहेज्यो॥ रा॥ राजि तुम पूरव वात जे कद्देशे, राजि ते तो तस्कर दंग लदेशे ॥ २०॥ १५॥ राजि इम कही नृप यो असवारी, राजि पासे पंकप्रिय कुंनकारी ॥रा ॥ राजि निज नगरी नणी जव चाले, राजि तव सेना मिली समकाले ॥रा०॥१६॥राजि मंत्री सामंत सं-18 मेला, राजि आवीने श्रया सहु नेला ॥ रा॥ राजि श्म बारमी ढाल ए नाखी, राजि जि १ घर. ********** Jain Education I ntional For Personal and Private Use Only W inelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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