SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धन्ना०लो साचवी, संतोष्यो परिवार ।। च ॥१०॥ वली नोजाईने जलां, नूषण विविध प्र-न कार ॥ मणिमय मन गमतां घणां, कीधां धनकुमार ॥ ॥११॥ एहमां गुण जे अति नघणा, जोवो हृदय विचार ।। मन्चर मूकी मन तणो, सेवो सुपरे सार ॥च०॥ १२ ॥ म. घर धस्यो मनमें घणो, कौरवे पांडव साथ ॥ तो ते खीया अति श्रया, हास्या सघली Pाथ ॥ च ॥१३॥ व्रतमाहे मछर धस्यो, पीठ अने महापीठ ॥ तो स्त्रोवेद लह्यो ईहां, P ब्राह्मी सुंदरी दी॥च०॥१४॥ एहवा नपनय अति घणा, दाख्या शास्त्र मकार ।। जिन कहे सातमी ढालमां, समजावे धनसार ॥ च०॥१५॥ ॥दोहा. ॥ गुण लीजे गिरुया तणा, नवि दाखीजे दोष ॥ जाति हीन पण गुण की, पामे सुखनो पोष ॥१॥ जाति रूप हीणो हतो, हरिकेशी चंमाल ॥ तेहने तपना गुण अकी, सेवे सुर नूपाल ॥२॥ गुण षी ते अपूज्य गे, गुणवंतो पूजाय ॥ नपनय इ हां सहु को कहे, वायस कोयल न्याय ॥ ३ ॥ यतः॥ अनुष्टुवृत्तम्. ॥ काकः कृष्णः पिका ६ कृष्णा, को लेदोपिक काकयोः ॥ वसंतमास संप्राप्ते, काकः काकः पिकापिका ॥१॥ नावार्थः-कागो अने कोयल, ए बे कालां होय बे, त्यारे कागमो अने कोयल ए बेमां शो फेर? ते वसंतमास आवे उते कागमोते कागमोज रहे ने अने कोयल ते कोयलज रहे . ! Jain Education P ational For Personal and Private Use Only Lainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy