SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ ढाल ७ मी. ॥ (माननी मोहनी रे. अथवा नहानो नाहलो रे.-ए देशी.) शेव कहे सुत सानलो रे, मनोहर माहरी वात ॥ धन धन साधुजी रे ॥ शास्त्रश्रकी में संग्रह्यो रे, अनोपम ए अवदात ॥धन धन साधुजी रे॥१॥ ए आंकणी. ॥ मुनिवर | एक महाबली रे, तपसीमें शिरदार ॥ ध॥ पंच महाव्रत जालवे रे, साचवे पंचाचार ॥ ध०॥२॥ कायनी जयणा करे रे, पाले प्रवचन माय ॥ध०॥ मद आये अलगा धरे रे, टाले चार कषाय ॥१०॥३॥ मासखमणने पारणे रे, त्रिकरण शुरु अदीन ॥ध०॥ गौच । रिये पहोत्यो तिहां रे, संयमथी लयलीन ॥१०॥॥र्यासमितिये चालतो रे, कोश्क नगर ४ | मझार ॥१०॥ करतो शुः गवेषणा रे, ते गयो इन्य आगार ॥ध०॥५॥आव्यो देखी साधुजी ।। हरे, श्राविका था नजमाल ॥ध॥ पक्कानादिक जूजूआ रे, लावीनरी नरी पाल ॥ध॥ ६॥ स्वामीजी अनुग्रह करो रे, वहोरो एहज आहार ॥ध०॥ देखी सदोष ते साधुजी रे, करे अन्यत्र विहार ॥३०॥७॥ श्राविका चित्त विलखी थई रे, बेठी घरने बार ॥ध०॥ एह । ४ वे फिरतो गौचरी रे, आव्यो अवर अणगार ॥ध०॥७॥ सरलपणे विचरे सदा रे, गुणग्रा* हक गुण लीन ॥३०॥ अवगुण एक जोवे नही रे, सुविहितशु लयलीन ॥धणापा धर्मला | न देई करी रे, कनो घरने बार ॥१०॥ विकसित वदने श्राविका रे, वहोरावे ते आहार ॥ ॐॐॐॐॐॐॐE** Jain Education national For Personal and Private Use Only M ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy