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________________ आप अति आशीष ॥ देवरजी अम कुल तिलक, जीवो कोमी वरीष ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ७ मी.॥ (करेलणां घम दे रे.-ए देशी.) हवे ते धनकुमारने, तेमी कहे धनसार ॥ कुल मंझण तुं माहरे, तुं मुज कुल शाण | & गार ॥ चतुर अन सनिलो रे ॥ सनिलो पुण्यनी वात, चतुर जन सांनलो रे ॥१॥ए आंस कणी ॥ अंगज तुज जनम्या पठी, अम कुल वाध्यो वान ॥ शहि वृद्धि अम घरे, जग जश थयो सुप्रमाण ॥ च ॥२॥ माता शीलवती तदा, हरषित वदन विख्यात ॥ सुतनां लिये वारणां, तुं मुज सुनग सुजात ॥ च० ॥३॥ नोजाई नली जातिशु, रंगे गाये 8 गीत ॥ लाम लगावे अति घणां, देवरने सुप्रतीत ॥ च॥४॥ सयण संबंधी सहु मिली, करे वखाण विशेष ॥ धनकुमर सरिखो नही, पुण्य प्रबल सुविशेष ॥ चणा॥ तव त्रिपये है। बांधव तिहां, रोष धरे मनमांहि ॥ अणख अदेखाई करे, अवगुण ग्राहक प्रांहि ॥च॥६॥ ते देखी धनसारजी, तमावीने तेह ॥ अगज त्रिएयेने तदा, समजावे ससनेह ॥च०॥॥ लघु बंधव ए तुम तणो, नाग्य बले नरपूर ॥ विनय विवेक विद्या नीलो, अम कुल अंबर 3 सूर ॥ च ॥॥ एहनी सेवाश्री तुमे, सुख लहशो श्रीकार ॥ कल्पवृक्ष सम एह , वंबित पूरणहार ॥ च॥ए । देखो इणे एक याममें, अर्ध्या लक्ष दीनार ॥ नोजन विधि CREHENGER Jain Education n ational For Personal and Private Use Only Lainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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