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________________ धन्ना० ११ तेइने, कंचन को सुप्रकार ||३|| उप्पन क्रोम निधिमें रहे, बप्पन क्रोम व्यवसाय ॥ बप्पन क्रोम व्याजे वधे, कर्ष संख्या इम थाय ||४|| लक्षगमे कोठार तिम, धान्यता परिपूर्ण ॥ इत्यादिक सविशदिने, की धन्ने तूर्ण ||५|| सुरमणि आदे अवर पिस, रत्नराशि रमणीक || नवनिधि परिग्रह सकलने, तृएापरे तजे ते ठीक ||६|| सपरिवार धन्नो तदा, संयम लेवा काज ॥ चिंते जो मुज नाग्यश्री, समवसरे जिनराज ॥ ४ ॥ ॥ ढाल १५ मी. ॥ ( बे बे मुनिवर वहोरण पांगस्या जी. - ए देशी. ) sa तिहां पुण्यप्रयोगे आविया जी, जिनपति वीर जिणंद विख्यात रे ॥ समवस रा देवे सुपरे रच्यो जी, तेजे करी दिव्य साक्षात रे || एहवे० ॥ १ ॥ ए प्रकली ॥ चोत्रीश अतिशय सुंदर शोजता जी, अष्ट महाप्रातिहार्य नद्दाम रे ॥ सहस जोयानो इंध्वज तिदां जो, श्रागें तिम धर्मचक्र अभिराम रे ॥ ९० ॥ २ ॥ त्रिगको विराजे मणि कल्याणथी जी, कोशीशा रत्नविचित्र सुतेज रे ॥ मणिमय सिंहासन शोने घणुं जी, छत्र त्रय अमर धरे घरी दे रे ॥ ए ॥ ३ ॥ चौवीश चामर वीजे देवता जी, नामंगल तरणि सहस सम नूर रे ॥ वाव्य विराजे चिहुं दिशि बारणे जी, देव विनिर्मित जलथी पूर रे ॥ ए० ॥ ४ ॥ चौविह संघ संगाथे परिवरया जी, समवसरण में श्री जिनराज रे ॥ बेसी सिंहास For Personal and Private Use Only Jain Educationa International न०४ ११‍ Arjainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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