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धन्ना०
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तेइने, कंचन को सुप्रकार ||३|| उप्पन क्रोम निधिमें रहे, बप्पन क्रोम व्यवसाय ॥ बप्पन क्रोम व्याजे वधे, कर्ष संख्या इम थाय ||४|| लक्षगमे कोठार तिम, धान्यता परिपूर्ण ॥ इत्यादिक सविशदिने, की धन्ने तूर्ण ||५|| सुरमणि आदे अवर पिस, रत्नराशि रमणीक || नवनिधि परिग्रह सकलने, तृएापरे तजे ते ठीक ||६|| सपरिवार धन्नो तदा, संयम लेवा काज ॥ चिंते जो मुज नाग्यश्री, समवसरे जिनराज ॥ ४ ॥
॥ ढाल १५ मी. ॥ ( बे बे मुनिवर वहोरण पांगस्या जी. - ए देशी. )
sa तिहां पुण्यप्रयोगे आविया जी, जिनपति वीर जिणंद विख्यात रे ॥ समवस रा देवे सुपरे रच्यो जी, तेजे करी दिव्य साक्षात रे || एहवे० ॥ १ ॥ ए प्रकली ॥ चोत्रीश अतिशय सुंदर शोजता जी, अष्ट महाप्रातिहार्य नद्दाम रे ॥ सहस जोयानो इंध्वज तिदां जो, श्रागें तिम धर्मचक्र अभिराम रे ॥ ९० ॥ २ ॥ त्रिगको विराजे मणि कल्याणथी जी, कोशीशा रत्नविचित्र सुतेज रे ॥ मणिमय सिंहासन शोने घणुं जी, छत्र त्रय अमर धरे घरी दे रे ॥ ए ॥ ३ ॥ चौवीश चामर वीजे देवता जी, नामंगल तरणि सहस सम नूर रे ॥ वाव्य विराजे चिहुं दिशि बारणे जी, देव विनिर्मित जलथी पूर रे ॥ ए० ॥ ४ ॥ चौविह संघ संगाथे परिवरया जी, समवसरण में श्री जिनराज रे ॥ बेसी सिंहास
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