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ने मेघ तणी परे जी, वरसे वचनामृत नवि हित काज रे ॥ ए॥ ५॥ परषद वारे आवे प्रेमशुं जी, वांदीने बेसे विनयश्री ताम रे ॥ सांजले सुपरे शिवसाधन नणी जी, देशना । | अद्भूत गुण अन्तिराम रे ॥ ए.॥६॥आरामिके दीधी जाइ वधामणी जी, नूपति श्रेणि कने अति नल्हास रे॥ सांजली नृप हर्षित प्रश् तेहने जी, कनकरसनादिक दिये सुविला है सरे ॥एणा॥ धनोशाह सांजली आव्या जन प्रते जी, धणने कहे सीधां वंगित काज रे ।
जेहनी अन्निलाषा मन इती घणी जी, ते प्रन्नु पान धस्या जिनराज रे ॥ ए॥॥5 संयम लेतां विलंब न कीजीए जी, एहवो फिरी मिलवो जोग ते दूर रे ॥ साहिब थापी 12 वीर जिणंदने जी, कर्मने हणवा थान शूर रे॥ ए०॥ ए॥कंत वयण सुणी संयम साधवा ।
जी, प्रमदा पिण अंश अतिहि नजमाल रे॥ सातत्रे धन सघलो वावरी जी, दान प्रमुख है। पिण अतिहि विशाल रे ॥ ए० ॥१॥ पमघा तिम नघा कुत्री दाटथी जी, देई धन लद । प्रमित तेणिवार रे ॥ तिम वली काश्यपने तेमाविने जी, केशाग्र समरावे स्त्री जरतार रे || ॥ ए॥११॥ सहस पुरुष निर्वाहक शिबिका जी, मंमावे तिहां सिंहासन सुप्रमाण रे ॥ | साजन सघला ततहण आविया जी, कहे मुख होज्यो तुम कल्याण रे ॥ए॥१॥ अ
१ सुवर्णनी जीन विगेरे. २ सर्व वस्तुना वेचनार कुत्रिकापणनी उकानेथी.
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