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________________ Jain Educatio ॥ स ० ॥ विषयारस वाहे थके, जोगविया बहु जोग || स० ॥ ६० ॥ १२ ॥ तृपतो जीव थयो नही, अविरतिथी कोइ काल || स० ॥ तेहनणी तुं सुंदरी, सुपरे हृदय निहाल ॥ स० ॥ ६० ॥ १३ ॥ वचन सुखी पियुनां तदा, कहे ते सुना नाम ॥ प्री० ॥ तुम साथे माहरे स दी, करवो उत्तम काम || प्री० ॥ कहे करजोमी कंतने ||१४|| ए प्रांकली ॥ पंचनी साखे पालव ग्रह्मो, ते किम मूक्यो जाय ॥ प्री० ॥ ते जली संयम माहरे, लेवो तुमचे सहाय ॥ प्री० ॥ १५ ॥ तव बोली साते सती, अनोपम करी प्रालोच ॥ प्री० ॥ सतीय सुन नी परे, श्रमचो पिण आलोच ॥ प्री० ॥ क० ॥ १६ ॥ अवर न को आधार बे, श्रमचे इणे सं सार || तुम साये तेह कारणे, लेश्शुं संयम जार || प्री०||||१७|| धन्नो कहे साची तुमे, पतिवृता व्रत परिपाल | स० ॥ संगतिथी सरवे थयां, व्रत लेवा नजमाल ॥ स० ॥ क० ||१८|| त्याग कियो तिथे तुरतमें, परिग्रहनो नहीं पार | स० ॥ चोथे नब्दासे प्रार मी, जिन कहे धन्य परिवार || सप | क० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ अथ ते धन्नाशाहने, रुदितणो परिमाण ॥ हय गय रथ गृह हट्ट तिम, पंच पंच शत मान ॥१॥ पांचशे प्रवहण परगमां, पन्नरशे वर ग्राम ॥ वालोतर एक सहस तिम, गोकुल आठ सुकाम ॥२॥ सप्तभूमि आवास श्रम, आठे प्रिया उदार ॥ कोमि एकेकी mmational For Personal and Private Use Only ww.jainelibrary.org.
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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