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धन्ना० तुज सरिखी हितवांजिका, अवर न नारी होय ॥ स०॥ जे तारे नवजल थकी, सबल स-10 ११० खाई सोय ॥स०॥०॥६॥ में ताहरो वच मानीयो, सुपरे धरी संवेग ।। स०॥ हित देखा-2
४ ड्यो हेजश्री, टाल्यो मन नदवेग ॥स०॥ध॥७॥ वय वली जाशे वेगथी, बलथी इंक्ष्यि | लहीन ॥ स०॥ व्याधि जरा जव लागशे, तव सवि वाते दीन ।।साध०॥5॥ अथिर संसा
रमां ए सहु, मिलियो के संबंध ॥ स ॥ संध्या राग तणी परे, अधिरशं शो प्रतिबंध ॥स ध०॥ए॥ यतः॥ शिखरिणीवृत्तम्. ॥ श्रियो विद्युल्लोला कतिपयदिन यौवनमिदं, सुखं
खाक्रांतं वपुर नियतं व्याधिविधुरं । गृहावासःपासः प्रणयतिसुखं स्थैर्यविमुखं, असारः | संसारः स्तदिहनियतं जागृत जनाः ॥ १॥ नावार्थः-लक्ष्मी वीजलीना चमत्कार जेवी चं,
चल , आ जुवानी केटला दिवस रहेवानी? सुख ले ते पुःखथी व्याप्त , निश्चे आ शरीर व्याधिग्रस्त , गृहस्थाश्रम पास जेवो ने, स्त्रीनुं सुख अस्थिर अने आ संसार असार
! ते कारण माटे हे लोको! निश्चे तमे इहां जागृत थान.॥१॥ धननो पिण मद कारमो, ते तो दीगे परतत ॥ स०॥ तेणे नवे माटी वही, जोय विचारी दद । स०॥ ध०॥१०॥ नर जव पामी चेतीये, तो सीके सवि काज ॥ स०॥ तप संयम संयोगथी, | ल सहिये अविचल राज ॥ स०॥ध०॥ ११॥ वार अनंती नीपन्यो, ए सगपण संयोग ११७
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