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________________ जन व्यंजन लावतां, तांबूलादि प्रधान ॥ ५॥ कठी गयो तव याचक, श्राव्यो प्रनाते गेद ॥ कवित गूढार्थ गाहा तस, गुण वर्णन करे तेह ॥६॥ कहे तव सुंब शिरोमणी, तूं आवे परन्नात ॥ देशं नोजन नावतां, तांबूल युत विख्यात ॥ ७॥ तिम त्रीजे दिन आविन, बो ले याचक एम ॥ शुं रे कृपण नश्री आपतो, नोजन व्यंजन तेम ॥ ७॥ जगमें यश रहेशे । पिण, नहि रहे तन धन मान ॥ रावण सरिखा राजवी, ते पिण चाल्या निदान ॥ ए॥ नंदराय धन मेलिने, नेल्यो समुश्मकार ॥ मम्मणशेठने सागर, पहोत्या नरकागार ॥ १०॥ दीधुं रहे अविचल थर, खाधुं खूटी जाय ॥ सापुरिसानुं जीवित, दानश्री सफल ग-12 गाय ॥११॥ देता देतां पात्रने, धननी थाये वृहि ॥ मूलदेव परे ततकणे, पामे सकल स-1 महि॥१२॥ यतः शार्दूलविक्रीमितवृत्तम्. ॥ श्री नात्यजिनेश्वरो धनन्नवे श्रेयाश्रयामा है। श्रयः, श्रेयांसश्च स मूलदेवनृपतिः सा चंदनानंदना ॥ धन्योसोकृत पुण्यकोगतनवः श्री शालिनशान्निधः, सर्वेप्युत्तमदानमानविधिना जाताजगश्रुिताः ॥१॥ नावार्थः-प्रश्रम | 18 तीर्थकर श्रीषनदेवस्वामी, ते धनसार्थवाहना नवमां (घुतनुं दान देवाथी) कल्याण 5 रूप लक्ष्मीना घर हता ते, श्रेयांसकुमर, मूलदेव राजा, चंदनबाला, तथा पूर्वनवने विषे । करघु ने पुण्य जेमले एवा आ धनकुभर अने शालिनकुमर; ते सर्वे पण नत्तम दान असे Jan Educato ational For Personal and Private Use Only Selainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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