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धन्ना० G४
जी, चिंतित कार्य विधाय || देखो ० ॥ १६ ॥ बांधव क्लेश बहु दुःख दीये जी, जरत बाहू बली जेम | कोशिके दल्ल विदल्लशुं जी, न गएयों एले बांधव प्रेम | देखो० ॥ १७ ॥ पांव कौरव मूळतां जी, कुल कय थयो सवि ताम ॥ ते जणी बांधवशुं तुमे जी, राखजो स्नेह सुप्रकास | देखो० ॥ १८ ॥ बांधव स्नेहथी तुम प्रते जी, को न गंजे इसे गम ॥ कं |टक वारुना बलयकी जी, जुन अगंजी हुए गाम | देखो || १७ || निर्धन बांधवे परिवयो जी, हुए बलवंत सदैव ॥ तंतुयोगे पट नीपन्यो जी, बल खमे अधिक तथैव ॥ देखो ॥ २० ॥ शीख श्रमची अबे ए घणी जी, कलह मत करजो तुमे पूत्र || ढाल अढारमी जि | ने कदी जी, राखजो अम घरसूत्र || देखो ॥ २१ ॥
॥ दोहा ॥ नेला रहेजो जावशुं, चारे तुमे सुपात्र ॥ प्रीति जली परे पालजो, प्रन्योन्ये शुचि गात्र ॥ १ ॥ अनुक्रमे पौत्रादिक वधे, न रहेवाये एकत्र । तो तुमे याजो जजूया, द्वेष न धरशो तत्र ॥ २ ॥ तुम चारे नामे करी, कलश चार धन पूर्ण ॥ चारे दिशि यांच्या बे में समकाले तूर्ण ॥ ३ ॥ ते लेजो तुमे नलखी, धनश्री सरिखा चार ॥ खाजो पीजो खरचजो, वलि करजो व्यापार ॥ ४ ॥ शीख देई इम पुत्रने, पचखे चारे आहार ॥ चार शरण शुन जावथी, धारे चित्त मकार ॥ ५ ॥ चोराशी लख जोनिने, खमे खमावे
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