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पामवा जी, उलन मातनो जात ॥ देखो०॥ ॥ यतः॥ कडुन होए लीवमो, पिण त स ताढी गंद ।। बंधव होए अबोलणा, तोहि पोतानी बांह ॥१॥ धनतणो ध्यान नवि धा3/ रिये जी, धन सदा अनरथ मूल ॥ अंगलो मेल ए जाणवो जी,धनथको सयण प्रतिकूल ।। देखो०॥१॥ सातखेत्रे धन वावस्यो जी, ते भयो आपणो सार ॥ शेष धन पाप कारण है। सही जी, जाणजो चित्त मकार ॥ देखो०॥११॥ पिण एह समय धनवंतने जी,मान आ | पे सहु लोक ॥ धनथकी लाज जगमें रहे जी, धन विण माणस फोक ॥ देखो० ॥१॥ 3 धनकी धर्म साधन हुवे जी, धनथकी दान देवाय ॥ धनथकी जीवरका हुवे जी, धनथकी
सुजस सवाय ॥ देखो० ॥१३॥ निर्धन आदर नवि लदे जी, निर्धन शव सम होय ॥ धन | लाविण कोय धीर नही जी, प्रत्यय न धरे तस कोय ॥ देखो० ॥१४॥ तेह नगी धन तुमे । राखजो जी, पिण मत करजो क्लेश ॥ क्लेशथी उःख लहेशो घणो जी, इह परनव सुविशे।
॥ देखो ॥१५॥ यतः ॥ अनुष्टबूवृत्तम्.॥प्रतापो गौरवं पूजा, श्रीयशः सुखसंपदा ॥ ५ कुलेतावत्प्रवाईते, यावन्नोपद्यते कलि ॥२॥ नावार्थः-प्रताप, महोटाइ, पूजा, लक्ष्मी, ४ जश अने सुखसंपदा; ए सर्वे ज्यां सूधी कुलने विषे क्लेश न नत्पन्न थाय, त्यां सूधी वधे. ॥ ॥ कुटुंबमें क्लेश करते थके जी, लाज मर्याद सवि जाय ।। लघुता लहिये निज नातिमां
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