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________________ दिवस सवि निर्गमे, नोजन चोला तलै प्रनात संध्या समे॥२॥ एहवे धनपतिशाह सरो 5/ वर देखवा, आवे धरीय नमाह कारीगर पेखवा ।। साथे सवि सामंत मंत्रीश्वर नृप तणा, दशेठ सेनापति वृंद सेवक पिण अति घणा ॥३॥ शिरपर सोवन स्त्र सूरज परे जगमगे, त याचक नोजक नाट अनेक ते नलगे ॥ जय जय तूं चिरंजीव तुं स्थित दुःख हरु, आश्रित जन आधार सयणने सुखकरु. ॥४॥ आवी सरोवर पाल जोवे चिहुं दिशि फिरी, 2 सरोवर केरो काम ते नद्यम मन धरी ॥ देखो तातने मात बांधव नान्नी वहु, चिंते चित्त मकार ए किम आव्यां सहु ॥ ५ ॥ जोईने निरधार करी मन चिंतवे, मात पिताने जात प्र मुख सवि संनवे ॥ पिण मुज कामिनी एह सुन्नज्ञ नामिनी, माटी वहे सहे कष्ट देखो गति कर्मनी ॥६॥ यतः॥ अनुष्टुब्वृत्तम्. ॥ कृतकर्म कयो नास्ति, कटपकोटीशतैरपि ॥ अवश्यमेव नोक्तव्यं, कृतंकर्म शुन्नाशुन्न ॥१॥ नावार्थ:-अजोना अजो कल्प (युग)२ जाय, तो पण करेला कर्मनो कय अतो नथी; केमके, सारु अश्रवा नरतुं, जे कर्म करयु हो य, ते अवश्य नोगवद्ज पमे .॥१॥ कर्मवशे दमयंती नल प्रिया दुःख लहे, राम घरनगी तिम सीत लंकागढ दुःख सहे॥ कलावतीने कर्म नदय पाव्यां यदा, शंख नृपे धरील । रोष बेदाव्या कर तदा ॥ ७॥ सुरसुंदरीने कंत वने मेली गयो, शैपदीने वनवासमें :ख है Jain Education Pational For Personal and Private Use Only ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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