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धन्ना० ॥ तैल चोलादि हितथकी ए॥१४॥सणी हरख्यो धनसार रे, सार नपाय ए॥नदर न. ६३ ४ रण करवा नणी ए ॥ ढाल पांचमी एह रे, त्रीजा नल्हासनी ॥ कही जिनविजये सोहामणी ए ॥ १५ ॥
॥दोहा. ॥ श्राव्यो धनपुरमें तुरत, पतिवृत ते धनसार ॥ देखे व्यापारी तिहां, नां है। तिनांति तिमिवार ॥१॥ नाणावटी दोशी तिमज, पारेखने मणिहार ॥ सौक्तिक मुक्ता फल क्रयिक, घृत तैलादि विचार ॥॥ सोनी मांधी सामटा, फमीया ने तांबूल ॥ साथ।
रिया सुखन्नदिका, कारक तिहां करे मूल ॥३॥ देखी व्यापारी सकल, पूछे तव धनसार K॥ व्यापारीने वणिजना, धननो कवण दातार ॥४॥ तव ते कहे अम नगरनो, स्वामी है। 8 धनशेठ ॥ ते धन आपे व्याज विण, नाग्यवंत लही ॥ ५ ॥ निर्धनने पिण शर खनन, कीधो आधार ॥ सन्निलिने हरखित थयो, परिकर युत धनसार ॥६॥
॥ढाल ६ ही.॥ (नदी यमुनाके तीर नमे दोय पंखीयां.-ए देशी.) पुत्र सहित धनसार सरोवरमें तदा, करे तिहां खननन कार्य धरी मनमें मुदा ॥ बां-181 धी कोटा तंग सुरंग पणे करी, कोश कोदाली तेम खणे ते करे धरी ॥१॥ शीलवती है। नी साथ वढू चार तिहां, माटी वहे न। पात्र ते खात्र खणे जिहां ।। क्लिष्ट कार्य करी एम ६३
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