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नु०३
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घन्ना० निर्धन अने निर्जीव एवं ममई, तेने विष हुं कां फेर देखतो नश्री. अर्थात् जो पासे धन होय, तोज सहु मान आपे; परंतु को ममदानी पेठे निर्धनना सामु जोतुं नथी. ॥२॥
॥ ढाल ५ मी. ॥ (त्रिपदीनी देशी.) धन नझित धनसार रे, चित्तमें चिंतवे ॥ इहां रहेवो जुगतो नहीं ए ॥ महोटाशुं सं-12 बंध रे, सगपणनो सदा ॥ तिणे करी लाजीजे सही ए॥१॥ धना विण घरसूत्र रे, धूल ली मिली गयो । लाज गइ सवि माहरी ए ॥ तिणे करी हवे परदेश रे, पिंमने पालशं ॥ मूल |
मजूरीने करी ए॥२॥ धन्नाशाहनी नार रे, त्रिण्ये तेमीने ॥ सुपरे सुसरोजी कहे ए॥ 18 पीयर जान पुत्र रे, सुखमें तिहां रहो ।। तुम पति दुःख अमने दहे ए ॥ ३ ॥ अमे जाशुं ||
परदेश रे, धनाशाह नणी॥ गोति करीने लावश ए॥ जो मिलशे ए पुत्र रे, तो तेहने इ-11 I हां ॥ तेमी वदेला आवशु ए॥४॥ सोमश्री कुसुमश्री रे, सुसराझा थकी ॥ प्रणमीने पीली
यर गइ ए॥ कदे सुन्नज्ञ ताम रे, साश्रु लोचन करी ॥ विनय श्रको अवनत थई ए ॥५॥ ४हूं आवोश तुम साथ रे, निश्चयश्री करी॥तुम सेवा करती थकी ए॥ स्त्रीने रहेवो सास |
रे, प्रतिपके सदा ॥ शास्त्रे पिण ए वकी ए॥६॥ स्त्रीने पीयर जेम रे,तिम नर सासरे॥ थिरवासे मुनिने सही ए॥ तेग रहित नृप तेम रे, मंत्री मति विना ॥ एटला सुयस लहे ६२
SAGAR
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