SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को, जेह चलावे काज ॥२॥ अन्नय कुमरना विरहथी, दाम्या दूता पूर ॥ ऊपर खूण थ यो इहां, विरह धन्नानो नूर ॥३॥अम पुत्री दुःखणी थइ, पति वियोगथी प्राय ॥ एह स ४ है यल अस्वास्थिनो, कारण तूं हि कहाय ॥४॥ तव बोल्यो धनसार श्म, नृपने करी प्रणाहम ॥ धनपति मुज वल्लन घणो, आशानो विश्राम ॥ ५॥ मुजश्री दुःख पाम्यो नथी, पि Pण ए अग्रज वेण ॥ निसुणी रात्रे नीकल्यो, मी सघलो सेण ॥६॥यतः॥अनुष्टुब्वृत्तम्.॥ रेजिह्वे कुरु मर्यादां, नोजने वचने तथा ॥ वचने प्राण संदेहो, नोजने च अजीर्णता ॥१॥ नावार्थ:-हे जीन! तुंनोजन करवाने विषे अने वचन बोलवाने विषे मर्यादा राख; कार- 15 - के, जो वचनने विषे मर्यादा नहि राखे तो, को वखत जीव जशे अने नोजनने विषे । मर्यादा नदि राखे तो अजीर्ण थशे. ॥१॥ सुणि नूपति ते त्रिएयने, दंझी लीधो दाम ॥ ग्राम प्रमुख खाँची लियां, पामो संघली माम ॥७॥ धन हीणो धनसारजी, थयो ते थो 5 काल ॥ न मिले असन व्यसन प्रमुख, दुःख पामे अप्सराल ॥ ॥ धन हीणो शोने नहीं, | ज्यूं आवलनो फूल ॥ धनवंतो आदर लहे, चंपा फूल अमूल ॥॥ यतः॥धनमऊय का कुस्थ, धनमूल मिदंजगत् ॥ अंतरं नैव पश्यामि, निईनस्य शबस्य च ॥॥नावार्थ:-हे राम! तुं धन पेदा कर, कारण के, पालुं जगत् धनना पर आधार राखनारंडे, केमके । Jain Education a tions For Personal and Private Use Only ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy