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________________ *** १६॥तिम ए मणि जेहनी पासे, वैरी गद इति ते नासे ॥ नूतादिक तेहने नवि कोपे, एई 18 मणिने कोय न लोपे ॥१७॥ सुणी राजा प्रत्यय पाम्यो, मन हरख्यो जे हुवो कामो॥ध-12 नाने ये सनमान, परख्यो ए बुद्धि निधान ॥ १७॥ जोतां मिल्यो जुगते जमाइ, पुत्रीनी पूरण पुन्या ॥त्रीजे नल्हासे सवाइ, ढाल त्रीजी जिन श्म गाइ ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥राजाये तव धन प्रते, करीनव श्रीकार ॥ पुत्री परणावी तुरत, सौन्ना ग्यमंजरि सार ॥१॥ ग्राम पंच शत सोपियां, तिम हय गय शत पंच ॥ बीजो पिण दी धो बहुल, वस्त्रादिक सवि संच ॥२॥ सुख विलसे दंपति सुखे, चक्रवर्ति सम नूर ॥ बुद्धि तेज बलवंत तस, जिम गयणांगण सूर ॥३॥कोशंबीधी बाहिरे, वाशो धनपुर गाम ॥ गढ मढ पोल प्रसादथी, सुंदर अति शुन्न गम ॥४॥ जिनमंदिर महोटां रच्यां, थाप्या है श्री जिनराज ॥पूजा सत्तर प्रकारथी, दिन दिन अधिके साज॥ ५॥ चोराशी चहुटां सुनग, विसरी तिहां बजार ॥ वरण अढार विशेषथी, करे विविध रोजगार ॥६॥ सुख संघ लो तिहां लोकने, पिण नहि नदि य निवाण ॥ तिणे आतुर धन्नो रहे, जल विण शो अहि | गण ॥ ७॥श्म चिंतीने ततक्षणे, सर करवा सुविलास ॥ स्थानक निरखीने पुरस, आरं बन्यो आयास ।। ७ ॥ शुल वेला अवलोकने, मांड्यो कार्य महंत ॥ महेनतिया महेनत करे, -** १७६१-६२०८ Jain Education Litional For Personal and Private Use Only AAjainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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