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________________ 17 ३ एपद 5 धन्ना० । हिये ॥ ५॥ रति नपरलो जेह रत्न, तेहना कीजे बहु यत्न ॥ रत्नाकरनो निष्पन्न, स्वान्नावि- क घाट संपन्न ।। ६ ॥ तेह रत्न सकल फल आपे, खंमित कुःख स्थानके थापे ॥ हवे मौक्ति क आठ प्रकारे, नत्पत्ति कही अनुसारे॥७॥ीपोदर १ गजने शीश २, म ३ शंख ४ से वराह ए जगीश ॥ वंशमूल ६ मंमूकने ७ नाग , ए आठ स्थानक शुन्न लाग॥७॥ मगिरत्न तथा बहु नेद, दाख्या शास्त्र तजीने खेद ॥ तुम मणि ए बहु मूल्य, चिंतामणी | रत्नने तुल्य ॥ए॥ एह मणिने राखी संग, करे युः ते होय अनंग ॥ एह जेहने गृहे पू-14 जाये, इति सात तिहाथी जाये ॥१०॥ नूत प्रेतादिक साहात, जे कोप्या करे नत्पात ॥ ते पिण एह रत्न प्रनावे, शुन्न शांति होवे वदावे ॥११॥ ज्वर वमन शूलादिक रोग, ते एल मणिने संयोग । सवि कष्ट ते दूरे प्रावे, जिम रवि तेजे तम जावे ॥१२॥ एहनो प्रत्यय 8 तुमे देखो, सुविशेष थकी तुमे पेखो। महोटो एक थाल मंगावो, शुन्न शालि कणेथी न-2 रावो॥ १३ ॥ मध्यस्थाने ए मणि मूको, पडे निरखंतां मत चूको ॥ को पंखी जात न 8 खाशे, तो ए मणि परिक्षा थाशे ॥१४॥राजाये ततक्षण कीधो, को पंखोये कण नवि लीधो॥ मणि लीधो थालथी जाम, कण खाधा पंखीए ताम ॥ १५ ॥ सुणो स्वामी रत्ननो | एह, प्रत्यक्ष प्रताप अव्ह ॥ थाल पासे व्रमण खगे कीधो, कण मात्र किणे नवि लीधो ॥.. -A- SACARENESS 45%4545%25% Jain Educatio ational For Personal and Private Use Only T w.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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