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________________ नपरत्नना, दाख्या ने शुननेद ॥३॥ ए नव रत्नने आश्रया, नव ग्रह के निरधार ॥ फल | पिण देखामे तुरत, श्रेष्ट नेष्ट तिशिवार ॥ ४॥ पद्मराग रवि । मौक्तिक शशा, २ विद्रुम नौम ३ विख्यात | बुध मरकत धनगु वजू ५ तिम, पुष्कराज गुरु ६ जात ॥५॥ ६६ नील शनिनो ७ करो, राहु गोमेद गणिऊ ॥ केतु वैमूर्य ते लसगियो ए, नव विध एह नणिऊ ॥६॥ स्फटिक रत्न चिहुं नेदश्री, सूर्यकांत १ शशिकांत २॥ हंसगर्न ३ जलकांत तिम, गुण निष्पन्न एकांत ॥ ७॥ साउनेद रत्नना, रत्नपरिक्षा मांह । गुण अवगुण पिण तेहना, दाख्या सोबाह ॥ ७॥ ॥ ढाल ३ जी.॥ (काज सीध्यां सकल दवे सार.-ए देशी.) है पीरोजा अवर प्रकार, नील गंयावंत नदार ॥ पीत रक्त प्रत्ना पिण होवे, शाम रंग ते सवि विष खोवे ॥१॥ए चारे पीरोजा जाते, गुण एहना नव नव नांते ॥ पारापत ग्री वा रंगे, मणि सिंदूर वर्ण अन्नंगे ॥२॥रेखायुत अवर प्रकार, मणि नेद अनेक विचार ॥ 18 हवे चिंतामणिनो लेद, निसुणो कहुं टाली खेद ॥ ३ ॥ दीरानी कांति समान, नासूर अ-15 ति देदिप्यमान ॥ रेखा त्रिएये करी युक्त, मणि दोष थकी विप्रमुक्त ॥ ४ ॥ षटकोण जलो पर तरतो, सवाटांक प्रमाणे धरतो॥ ते चिंतामणि श्म कहीए, सेव्याश्री सवि सुख ल *55555 Jain Education national For Personal and Private Use Only Ixhujainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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