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________________ धबारे, सहस्रकिरण मणि सोहे ॥ पढी परंपर सह को पूजे, दर्शन करी दिल मोहे रे ॥०॥ ०३ प पु०॥ना पिण तेहनो गुण कोय न जाणे, तव नृपे परिक्षक तेड्या ॥ मान देइने मणि गु दण पूछे, पिण कोइ न कहे बेड्या रे॥०॥पु०॥णा तव नृपे नगरमा पमह वजायो, सुण 8 । जो सकल लोकाश् । जे ए मणिनो गुण देखामे, प्रत्यय प्रगट बना रे ॥०॥पुणा १०॥ & तेहने नृप बेग्यो दिये हरखे, पांचशे गाम नदार ॥ पांचशे दापी पांचशे घोमा, वलि थे। अवर प्रकार रे ॥न०॥पु०॥११॥ बेटी गुणनी जे ने पेटी, सौन्नाग्यमंजरी सारी ॥ परणा वे नृप तेहने रंगे, मणि परिक्षक जे विचारी रे ॥न०॥पुण॥१॥ सांजली पमह बव्यो ते । जाणी, धन्नाशाहे ताम ॥ राजसन्नामां आव्यो वेगे, नृपने करी प्रणाम रे ॥नापु॥१३६ ॥ देखी नृप लघु वयथी बोले, रे कच! तूं इजी नहानो ॥ रत्न परिक्षा करवा समरथ, कोश न परगट गनो रे ॥०॥पुण॥१॥ बुद्धि विशेष जो होये तुमची, तो ए मणी गुण दाखो। ॥ ढाल ए बीजी त्रीजे नल्हासे, जिन कहे मन दृढ राखो रे ॥न०॥ पु॥ १५ ॥ ॥दोहा. ॥ कहे धनशाह नृपति सुणो, रत्न परिक्षा वात ॥ शास्त्र सकल जोयां अने, || गुरु समीप सुविख्यात ॥१॥ हीरो मोती निलमणी, माणिक्य मरकत संच॥ मूल रत्न नानेद ए, शास्त्रे बोल्या पंच ॥२॥ पुष्कराज वैडूर्य तिम, विद्रुम ने गोमेद ॥ ए चारे UN Jain Education national For Personal and Private Use Only Gujainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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