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धन्ना० Այ
वदन ग्रहनिशि रहे, जाग्यहीनमां लीह ॥ ३ ॥ ते देखी धनशाहजी, चिंते चित्त विशेष ॥ एहने हितकारण जली, हुं जाइश परदेश ॥ ४ ॥ यतः ॥ आर्यावृत्तम्. ॥ दिसइविविरियं, जाणिकइसकणकण विसेसो ॥ अप्पाणं च किलकर, हिंमऊ तेण पुहविए ॥ २ ॥ जावार्थ:- परदेश जवाथी विविध प्रकारनां चरित्र देखवामां आवे बे, सन ने दुर्जनमां
शुं फेर बे? ते जाणवामां आवे वे अने आत्मानी कलना थाय बे; ते माटे पृथ्वीमां चालवं जोए ॥ २ ॥ ए लक्ष्मी ए गृह प्रमुख, विलसो एह निश्चिंत | सुख संयोग लहिशुं मे, | जो देशे जगवंत ॥ ५ ॥ इम निश्चय करि चित्तथी, गृहि चिंतामणी पास || एकाकी दृढ मन करी, चालण कियो प्रयास || ६ || राजाने पूग्यो नहीं, त्रिएये स्त्रीने तेम ॥ श्वसुर प्रमुख सवि सयाने, नाग कंचुकी जेम ॥ ७ ॥ बांमीने चाल्यो चतुर, यामिनिये तिल ताल || देश विदेश विलोकतो, नवनव कौतुक ख्याल ॥ ८ ॥
॥ ढाल २ जी. ॥ ( मगधदेशको राज राजेसर. - ए देशी. ) शाह ते पुण्य प्रयोगे, चिंतामणी संयोगे ॥ चिंतित कार्य सकल साधतो, ना ग्यबले सुख जोगे रे ॥ नवियां, फल देखो || पुण्ये सयल पदारथ सीके, पुण्य प्रबल जग देखो रे || || पु० ॥ १ ॥ ए प्रकली ॥ वचदेशे कोशंबी नगरी, अनुक्रमे तिहां
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