________________
धन्ना० एव
सरिखे सरिखा योगथी, युगते मली युगति ॥ ४ ॥ परण्या ते प्रमुदित पणे, जिम सीता रघुनंद ॥ दान मान दीघां डुरस, पोख्यो परिजन वृंद ॥ ५ ॥ नारी त्रिएयथको तिहां, वि लसे पूरण जोग । जिम मुनिवर लीलो रहे, गुप्ति त्रय संयोग ॥ ६ ॥ राजा परा माने घयुं, देखी बुद्धि प्रथाह ॥ शेठ सेनापति सर्वने, वल्लन धन्नोशाद ॥ ७ ॥
॥ ढाल १७ मी. ॥ ( घणराढोलानी देशी.)
एहवे वीर समोसख्या रे, परिवृत बहु परिवार ॥ गुणना पूरा | गौतम प्रमुख गुरो नया रे, चौद सहस अणगार || गुणना पूरा | श्रावो आवो रे, ए जिनपति पासे ॥ जावो: नावो रे, भक्ति सुविलासे । एहनी सेवाथी सुख थाय, पुण्यना पूरा ॥ १ ॥ ए झांकली ॥ चंदनबालादिक तिहां रे, साधवी सहस वत्रीस ॥ गु० ॥ अतिशयथी अति नृपता रे, जगगुरु श्री जगदीश ॥ गु० ॥ श्र० ॥ २॥ श्रेणिक वंदन चालिया रे, चतुरंगी सेना साथ ॥ गुण ॥ पंचानिगम ते साचवी रे, नेट्या त्रिभुवन नाथ ॥ गु० ॥ श्रा० ॥ ३ ॥ गौन शेव सुली तदा रे, जिन ग्रागमन अनूप ॥ गुण जाव घरी वंदन तदा रे, पहोत्यो ते जिम नूप ॥ गुण ० ॥ ४ ॥ बारे पर्षद तिहां मली रे, इंशदिक सुर कोमि ॥ गुण || देशना द्ये तव वीरजी रे, वचनामृत रस जोकि | गु०॥ श्रा ॥ ५ ॥ श्रनित्यपणो संसारमें रे, धन यौवननो जाएग
॥
Jain Educationa intemational
For Personal and Private Use Only
उ० २
५४
www.jainelibrary.org