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जी, देण लेण धन वात ॥ नामु गमु एहनु जी, जाणुं हुं अम ब्रात ॥ सो० ॥ १७॥ पूग्यो । शेटे अमनणी जी, नयन तणो व्यवसाय ॥ संन्नाली अमे जोश्युं जी, तव पाम्या सवि गय । सो ॥१॥ लाख दोय धन अम प्रते जी, आपो प्रथम एक वार ॥ तव धूतारे तत दी। कणे जी, कीधो च्य तैयार ॥सो ॥१॥ कहे धनो श्रम शेग्ने जी, घरमें नेत्र अनेक ।। मुक्यां ने ते बहु जणे जी, धन कारण सुविवेक ॥ सो० ॥२०॥ ते कारण तुमे तुम तयो ।
जी, यो लोचन सुप्रकार ॥ जोश्ने ते सारिखो जी, दीजे नेत्र ईवार ॥ सो०॥१॥ सुणि 18 कांणो विलखो यो जी, नेत्र ते केम कढाय ॥ लेहणायी देहणो थयो जी, मूकी धन ते
जाय ॥ सो ॥ २२॥ नूपति मन हरखित श्रयो जी, बुद्धि की ततखेव ॥ पकड़ी धूतारो है &तदा जी, काढ्यो देशथी हेव ।। सो ॥२॥ जयलक्ष्मी धन्ने वरी जी, पूरव पुण्य पसाय॥ बीजे नल्हासे सोलमी जी, ढाल ए जिन सुखदाय ॥ सो० ॥ ॥
॥ दोहा. ॥ गौनइ शेग्नो नय गयो, हृदय अयो नन्हाह ॥ धन्नो मतिवादण तस्यो, 5 चिंता समुइ अथाह ॥१॥ पुत्रि सुन्नज्ञनो तिहां, धन्नाशाहने साथ ॥ विवाहनो निश्चय | करे, आपी बहुली पाथ ॥२॥ लगन लीयां पूरी उरस, वहेंच्यां फोफल पान ॥ नात जा तने पोखवा, परिघल कियां पकवान ॥ ३॥ मंझप महोटा मामिला बिहुं गमे बहु जत्तिा
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