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धन्ना०
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A लेयने जी, द्यो मुज लोचन तेह ॥ ढील हवे करवी नही जी, राखो पूरव नेह ॥सो० ॥६॥
कहे गौन सुणो शेठजी जी, ए शी खोटी रे तात ॥ चंपा पिण दीठ नथजी, लोचन नीशी वात ॥ सोगा। आज लगें नवि सनिल्यो जी, लोचननो व्यवहार ॥ खोटी वात प्रकाशतांजी, किम रहेशे इतबार ॥ सो० ॥6॥ तव कांगो आक्रोशथी जो, बोले व बरु | वेण ॥ कोमिथकी बहु मूल्य के जी, निर्मल माहरु नेण ॥ सो०॥ ॥ रुडुं देखी राखशो जी, शुं मुज नेत्र सुजाण ॥ आखर हुं गेडुं नहीं जी, जो मुज पिंझमें प्राण ॥सो०॥१॥ गौनशेठने ग्रही तदा जी, लेई गया दरबार ॥ श्रेणिक नृप संशय पड्यो जी, निसुणो वा त विचार ॥ सो० ॥११॥ अजयकुमरने अति घणुं जी, संन्नारे सहु ताम ॥ जो एक सूर्य न ! दय हुवे जी, तो किशं दीपक्ष काम ॥सो॥१२॥ न्याय न थाये कोईथी जी, तव श्रेणिक नूपाल ॥ पुरमें पमह वजावियोजी, सनिलजो चनसाल ॥ सो ॥१३॥ काणे जे ऊग | मो रच्यो जी, तेहनो जे करे न्याय ॥ गौनश्शेठ पुत्री तणो जी, पाणिग्रहण तस थाय
॥ सो०॥ १४ ॥ पमह सुगी धन्ने बच्यो जी, आव्यो नृप दरबार ॥ तेमावी काणा प्रते जी, A ४ कहे श्म वात विचार ॥ सो॥१५॥ गौनश्शेग्ना घर तणा जी, बु अमे लेखक धीर ॥ * वात सकल अम दफतरे जी, लिखि राखी ने वीर ॥ सो० ॥ १६ ॥ शेग्ने खवर न को पके
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