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कल्प०
॥१॥
दीवे जारहे वासे दाहिणड्डनरहे, श्मीसे उसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए विश्वताए,' सुसमाए समाए विश्वंताए, सुसमसमाए समाए विश्कंताए, उसमसुसमाए समाए बहुविश्कताए-सागरोवमकोडाकोडीए 'बायालीसवाससहस्सेहिं कणिआए पंचदत्तरिवासेहिं अनवमेहि य मासेहिं सेसेहिं'-इक्कवीसाए तिबयरेदि इकागकु
समुप्पन्नेहिं कासवगुत्तेहिं, दोदि य हरिवंसकुलसमुप्पन्नेहिं गोअमसगुत्तेहिं, तेवीसाए । तिबयरेहिं विश्वंतेहिं, समणे जगवं महावीरे चरमतिबयरे पुवतिबयरनिहिछे, माह*णकुंमग्गामे नयरे उसनदत्तस्स मादणस्स कोमालसगुत्तस्स नारिआए देवाणंदाए
मादणीए जालंधरसगुत्ताए पुत्वरत्तावरत्तकालसमयंसि हबुतराहिं नस्कत्तेणं जोगमवाग-1 एणं आहारवक्कंतीए नववकंतीए सरीरवकंतीए कुचिसि गन्नताए वक्ते ॥३॥समणे ।
"बायालीसाए, 'पंचहनरिए, चरिमे तित्थयरे,
॥१॥
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