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अक्षरो ते प्रतिना संशोधकना ( उपाध्यायजीना) हाथे ज लखायेला छे. ए प्रतिनां १२६ पत्र छे. तेना अंतमां "संवत १७३३ | पोस वदि २ बुधवासरे लषीतं राजनगरे" आम लखेल छे. मुद्रण वखते खास मदद आ ज प्रतिनी लेवामां आवी छे. त्रीजा नंबरनी प्रतिनो उपयोग प्रेसकॉपी कराव्या पहेलां चोथा नंबरनी प्रतिने मेळववामां ज करेलो छे. ए प्रतिनां १२० पत्र छे. तेना | अंतमां "संवत् १७३३ वर्षे चैत्र शुदि ५ बुधवासरे लखीतं-" एवो उल्लेख छे. बीजा नंबरनी प्रति शुद्ध नथी छतां तेनो उपयोग मुद्रणकार्यमां पण कर्यो छे. | उपर पहेला अने त्रीजा नंबरनी प्रतिना विषयमा एम कहेवामां आव्यु के 'तेमां जे अंदर अने मार्जिनमा संशोधन थयुं छे ते संभवतः उपाध्यायजीने हाथे थएलुं छे.' आ कथन उपर प्रश्न थइ शके छ के ते संशोधित अंश उपाध्यायजीना ज हाथनो छे तेनी शी साबीती ?. आ प्रश्ननो उत्तर मेळववानां संक्षेपमा बे साधनो तो छे ज-(क) खरडारूपे लखायेल मळी आवतां पुस्तकोना | अक्षरोनी आकृति. (ख) पोताना ज दस्कतथी लखायेल कागळोना अक्षरोनी आकृति. । उपाध्यायजीनी कृतिओना केटलाक चेरभूसवाळा खरडाओ मळे छे, जेने बीजानुं लखाण न मानी शकाय. तेवा खरडा-1
ओना अक्षरोसाथे बीलकुल मळता आवता अक्षरोवाळा तेओनी सहीवाळा पत्रो पण मळे छे. आ बन्ने प्रकारना लखाणना अक्षरो | जाते ज सरखावी जोया छे अने उपाध्यायजीना अक्षरोनी आकृतिनुं माप काढ्युं छे. ए मापनी कसोटीए जोतां पहेला अने त्रीजा नंबरनी प्रतोमानो संशोधित भाग उपाध्यायजीनो ज लखेल छे तेम जणाय छे. छतां अमे संभवतःशब्द वापों छे तेनुं कारण ए छे | के उपाध्यायजीना जमानाना केटलाक भिन्न भिन्न विद्वान लेखकोना हस्ताक्षरो सरखावतां केटलीक वार तेमा स्पष्ट भेद पारखवो बहु| ज कठण थइ पडे छे. तेथी कदाच पहेला अने त्रीजा नंबरनी प्रतोनो संशोधित भाग उपाध्यायजीना सदृशाक्षरी कोइ विद्वाने लख्यो दा
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