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पत्र
गुरु तत्त्वविनिश्चयः
COCONUARUCRECORRECRUGGLE
SAHITraमा
गाथा विषय
पत्र. ९९-११९ यथाच्छंदनुं स्वरूप.
१५६-२ ९९-१०१ यथाच्छंदतुं लक्षण, तेना एकार्थको भने उत्सूत्रनो अर्थ. १०२-३ उत्सूत्रना बे प्रकारो. १०४११. चरणोत्सूत्रनुं स्वरूप. ११-१२ गत्युत्सूत्रनुं
स्वरूप. ११३-१९ अन्य उत्सूत्रनो मां ज समावेश ___ आदि. १२०-२१ पार्श्वस्थादिने वन्दनादि करवाथी लागता दोषो.
___ १६२-२ १२२-२३ गुणाधिकने वन्दनादि करतां निषेध नहि ____ करनार पार्श्वस्थादिने लागता दोषो १६३-
१ १२४ खास कारण विना पार्श्वस्थादिनो सत्कार आदि करनारने प्रायश्चित्त.
१६३-२ १२५ पार्श्वस्थादिना संसर्गथी सुविहितोनी अवन्दनी
यता ते उपर अशुचिस्थानमा पडीगएल चम्प
गाथा विषय
| विषयानुकनी माळा अने नीच कुळना प्रसंगमा आवता
क्रमणिका. ब्राह्मणपुत्रोनुं दृष्टान्त.
१६४-१ १२८-३२ पार्श्वस्थादिना संसर्गथी लागता दोषोनुं
सोदाहरण प्रदर्शन १३३-४४ वन्दनीयता लिङ्गनी ज होवी जोइए,
सुविहितपणानी नहि कारण छद्मस्थो अन्यना हृदयगत भावोने यथावस्थित जाणी शके नहि'
ए उपर शिष्याचार्यनी प्रश्नोत्तरी. १६६-१ १४५-५४ अपवादी पार्श्वस्थादिनी पण वन्दनीयता.
तेमने क्या, क्यारे अने कइ रीते वन्दनादि करवू जोइए तेनुं प्रदर्शन.
१६९-२ १५५ सकारण पार्श्वस्थादिने वन्दनादि नहि करनारने लागता दोषो.
१७१-२131
॥२६॥
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