________________
पत्र.
गाथा विषय
पत्र. गाथा
विषय ४६-४७ भिक्षुने आचार्योपाध्यायादिना उद्देशनार्थे
६३ उपसम्पत् परिपाटी, वर्णन कल्पग्रन्थानुसारे उपसम्पत् स्वीकारवानो विधि. १४३-१ होवानो निर्देश. कुगुरुना वर्जननो उपदेश. १४८-२ 1४८-५३ आचार्यादि अवसन्न होइ उद्यतविहारी न ६४-११९ कुगुरुनी प्ररूपणा. १४८-१६२ थाय त्यारे अन्याचार्यादिना उद्देशननो विधि
६४ कुगुरुना पार्श्वस्थादि पांच भेदो. १४८-२ अने मुख्य आचार्य ने समजाववाना प्रकारो, १४३-२, ६५-८३ पार्श्वस्थy स्वरूप.
१४८-२ ५४ पार्श्वस्थादि दोषोथी रहित एवो संविग्नगीतार्थ
६५ पार्श्वस्थना देश अने सर्व एम के भेदो. सर्वपापण काथिक, दार्शनिक कहो के प्राश्निक,
वस्थy लक्षण, ६६-७० शब्दार्थभेदथी पार्श्वस्थना
पार्श्वस्थ, प्रास्वस्थ अने पाशस्थ एमत्रण मेदो. ७१ देशमामक अने संप्रसारक होय तेवाने उपसम्पन्न
पार्श्वस्थनुं स्वरूप. ७२-८३ देशपार्श्वस्थनां शय्यातरथवाथी लागता दोषो अने प्रायश्चित्त. टीका
पिण्ड आदि स्थानो अने तेनी व्याख्या. काथिका दिनां स्पष्ट लक्षणो.
१४५-
१ ८४-८६ अवसन्ननुं स्वरूप, तेना भेद अने तेनां 51५५-६२ आचार्यादि गृहस्थ थइ गया होय के देवगत
स्थानो.
१५३-१ थया होय त्यारे अन्याचार्यादिना उद्देशननो ८७-९५ कुशीलनु स्वरूप, भेद आदि. १५४-१ विधि. १४६-२ ९६-९८ संसक्तनुं स्वरूप.
१५६-१
GACCORRECOGNOROCESS
in Education
For Private & Personal use only
Bry.org