SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काम ॥ २० ॥ बीजाने एम कह्या करे के मारुं आ उपकरण न लेबुं, न वापखुं इत्यादि अने तेनी ज ममतामां फलेलो रहे ते मामक. ४ आवाह विवाह, निष्क्रमणप्रवेश, क्रय विक्रय आदि असंयत कार्योंमां गृहस्थोने पुछये के वगर पुछये विधि निषेध करे अने कहे के 'अमुक न करवुं, अमुक मारा कह्या प्रमाणे करो तेथी फायदो थशे' ते संप्रसारक. चतुर्थ उल्ला सेवाकरयोग्य सुगुरुनुं स्वरूप बताववा उपाध्यायजीए पुलाक, बकुश, कुशील, निर्बंथ अने स्नातक ए पांच प्रकारना भगवती अंगवर्णित निर्मन्थोनुं वर्णन आप्युं छे. आ वर्णन छत्रीस द्वारमां वहेंचायतुं होइ तेनाथी ज ए उल्लासनो मोटो भाग रोकाएलो छे. ए पांच निर्मथोनां लक्षणो तेओना भेद-प्रभेदो अने ए अवान्तर भेद-प्रभेदोनां लक्षणो विगेरे एटलुं बधुं विस्तार ने स्पष्टतापूर्वक आपलं छे के ते भाग एक खास प्रकरण बनी गयुं छे. पुलाकादि पांच प्रकारना निर्मथो तरतमभावे भावगुरु होइ सुगुरु छे ज. पण ते उपरांत जेओ संविग्नपाक्षिक अर्थात् शुद्धचारिमार्गाराधक भावगुरु न होवा छतां शुद्धप्ररूपक होइ भावगुरुत्वनी सम्मुख प्रवृत्तित्वाळा द्रव्यनिग्रंथ छे तेओ पण गुरुपदने लायक छे. आ ते गुरुतत्त्वविनिश्चय नामनो आ ग्रंथ गुरुनी परीक्षाना प्रकरणमां ज सार्थकभावे समाप्त थाय छे. 180001 Jain Education International For Private & Personal Use Only: मन्थनुं वस्तु. ॥ २० ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy