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ग्रन्थy
वस्तु
टुंकामां
बीजा दाखलामा एम छे, के बाळक भीने शरीरे तल लगाडी आव्यो, अने पहेली ज वार तेनी माताए जोयुं के तरत जट
| तेणीए ते बाळकने धमकाव्यो, फरी तेम करवा ना पाडी, अने ते बाळकना शरीरे लागेला तल खंखेरी पाछा ढगलामां नाखी आवी. ॥१७॥
आथी बाळक चोरी करतां अटक्यो, अने तेथी ते पोते अने तेनी माता बन्ने प्रामाणिकपणाना माननुं सुख भोगवता थया. तेवी ज
रीते गुरु चारित्रना अनुराग अने ज्ञानदृष्टिथी शिष्यने तेनी भूलनु प्रायश्चित्त करावे तो शिष्यनु हित थवा उपरांत गुरु पण सन्मा-16 अर्गना मधुर फळने अनुभवे. | जो के मूळगुणमा आवेलो दोष चारित्रनो नाशक होइ क्षन्तव्य नथी, छतां तेमांए एकान्त तो नथी ज. जगतना व्यवहारो अने प्रसंगोनी विविधता न कळी शकाय तेवी होय छे. अमुक वात एक दृष्टिए सर्वथा हेय होय छतां बीजी दृष्टिए अने बीजे प्रसंगे| क्यारेक क्यारेक उपादेय पण बने छे. मूळगुणनो अतिचार सर्वथा हेय छतां क्यारेक परिणामनी दृष्टिए सेववो पण पडे छे, अने| तेवु सेवन कर्या छतां पण ते दोष सेवनार शुद्ध रहे छे अने गणाय छे. एटलं खरं के आवो अपवादमार्ग क्या लागु पडे अगर |पाडवो जोइए ए जाणवामां बहु ज सावचेती राखवानी होय छे. अनेकान्त दृष्टिनी आ वस्तुस्थिति समजाववा उपाध्यायजीए 'मूळगुणनो अतिचार क्या दोषरूप नथी गणातो अने क्यां गणाय छे' ए समजाव्युं छे. तेओए कह्यं छे के पुष्टआलंबननिमित्ते मूळगुणमा अतिचार लाग्या छतां साधु शुद्ध रहे छे. अने आलंबन पुष्ट न होय तो तेवा अतिचारथी साधु पतित थइ जाय छे. पुष्ट अने अपुष्ट आलंबनने समजाववा तेओए का छे के जो अतिचारना सेवननुं परिणाम छेवटे रत्नत्रयनी रक्षा अने वृद्धिमा ज आवतुं होय तो पुष्ट आलंबन समजवू. अने जो कोइ मनकल्पित प्रसंगर्नु बहानुं करी अतिचारनु सेवन करवामां आवे तो त्या अपुष्ट आलंबन.
॥१७॥
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