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________________ टुंकामां ग्रन्थन वस्तु. वस्तुने स्फुट करता तेओए कह्यु छे, के नाम, स्थापना, द्रव्य अने भावगुरुरूप बाह्य आलंबन जेटजेटले अंशे उच्च कोटिर्नु होय, तेटतेटले अंशे ते आलंबननुं ध्यानकरनारना परिणाम विशेष निर्मळ थाय छे. तेवी ज रीते अनेक गुरुओनो आश्रय एक गुरुना आश्रय करतां विशेष फळवान् थाय छे. पण ए बधुं व्यवहारदृष्टिए ज समजवू, नहि के निश्चयदृष्टिए. निश्चयदृष्टिए तो परिणामनी निर्मळतानो आधार मात्र ध्यातानी योग्यता उपर छे. जो ध्याता योग्य होय तो घणी वार बाह्य आलंबन तद्दन साधारण छतां वधारे फळ मेळवे छे. अने जो ध्याता पोते योग्य न होय तो बाह्य आलंबन गमे तेटलुं उच्च प्रकारचें होय तो पण तेनाथी ते फळ मेळवी शकतो नथी. आ आशयने स्पष्ट करवा उपाध्यायजीए एक सैद्धांतिक कथा टांकी सुंदर रीते वस्तुनुं मर्म समजाव्युं छे. कथा एवी छे, के-एक ब्राह्मणपुत्र भगवान महावीर जेवा सातिशय पुरुषने जोइ तेओ प्रत्ये अणगमो बतावे छे. अने भगवानना ज शिष्य गौत मने जोइ प्रसन्न थाय छे. भगवान् जेवू सर्वोत्तम बाह्यालंबन छतां ते ब्राह्मणपुत्रना मानस उपर तेनो सुंदर प्रभाव नथी पडतो. ज्यारे जागौतम, जे भगवाननी अपेक्षाए तद्दन साधारण व्यक्ति गणाय, तेनो प्रभाव ते ब्राह्मणपुत्रना मानस उपर सुंदर रीते पडे छे. आ स्थळे व्यवहारदृष्टिए विचार करनारने तो जरुर एवी गुंचवण उभी थाय, के एक महान् पुरुष जे कार्य न करी शक्या, ते ज कार्य | तेनो साधारण आश्रित केम करी शके ?, पण निश्चयदृष्टिए विचार करनारने वस्तु तद्दन स्पष्ट छे. ते एम जाणे छे, के तात्त्विक रीते लाभ मेळववो ए पात्रनी योग्यता उपर अवलंबे छे. पात्र योग्य होय तो गमे तेवा अने गमे तेटला साधारण आलंबनथी पण वधारे लाभ मेळवी शके. अने योग्य न होय तो तेने माटे सुंदरतम आलंबन पण वृथा छे. छतां ए वात तो न ज भूलावी जोइए, के | निश्चय ए राजमार्ग नथी, राजमार्ग तो व्यवहार ज छे. ॥११॥ JainEducation For Private Personal Use Only ainebaty.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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