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________________ परिचय. ग्रन्थनो प्रसंग आव्यो त्यो मेळवता रहीए छीए, थोडी छतां अतिमहत्त्वनी केटलीक प्रामाणिक सामग्री अमारी पासे छे, पण तेने आ स्थळे छुटी छवाइ आपवामा कांइ महत्त्व न होवाथी ग्रंथकर्ताना विशिष्ट परिचयनी बाबतमा हमणां तो वाचको समक्ष हाथ जोडी माफी ॥१०॥ मागवी ए एक ज मार्ग शेष छे. । आ मौन विदायगिरि वखते पण एक बे वातो वाचको समक्ष मूकी दइए तो तेओ अमने छेक ज धृष्ट नहि गणे. १ प्रामा|णिक साधनो उपरथी जणायुं छे, के उपाध्यायजीन जीवन शरदांशतंथी जरा पण न्यून नथी ज. बलके तेथी पण वधारे होवार्नु | अनुमान थाय छे. २ उपाध्यायजीनो विद्याव्यायाम नेवु वरसथी ओछो न होवानां प्रमाणो छे. अने ग्रंथरचना काळ पंच्यासी वरसथी ओछो न होवानां पण निश्चित प्रमाणो छे. बाल्यकाळथी ते जीवननी छेल्ली घडी सुधी विद्या मेळववी, तेने पचाववी अने नव नव रूपमां मूकवी, विद्याओनी भिन्न भिन्न शाखाओमा तलस्पर्शी प्रवेश करवो अने गमे तेवा चमरखांनी पण परवा न करता तेनी भ्रांति सामे छेवटे एकला रही लडq अने * 18| सत्यमाटे गमे तेटलुं सहन कर ए तेओना जीवननी खास विशेषता होवानां पण प्रमाणो छे. हमणां ग्रंथकर्त्ताना परिचयना संबंधमा आथी वधारे आशा वाचक अमारा पासे न राखे एटलं कही विरमीए छीए. RSS RSSRAASARAM For Private Personal use only wininelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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