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________________ ग्रन्थनो परिचय. बीजं पण क्यांइ क्याइ छुटुं छवायुं लखायुं छे. दाखलातरीके जुओ आत्मानंदप्रकाश पुस्तक-१३ अंक-६ मा मुनिश्रीजिनविजयजीनो लेख. आटलुं बधुं ग्रंथकर्तासंबंधे लखायुं छे छतां तेथी अमारी पोतानी तृप्ति तो थवी बाकी ज छे. आना घणां कारणोमांनां केट|लांक कारणो आ छे- (क) मात्र अमारी ज दृष्टिए नहि पण हर कोइ तटस्थ विद्वाननी दृष्टिए जैन संप्रदायमा उपाध्यायजीनुं स्थान, वैदिकसंप्रदा-1 यमा शंकराचार्य जेवू छे. तेथी एवी व्यक्तिनुं जीवन केवळ किंवदन्तीओ अने ते पण आधार टांक्या विनानी किंवदन्तीओ उपरथी अगर तो संशोधनपद्धति विना ज लखाय ए इतिहासप्रेमीने संतोष न आपे. तेमां पण गमे तेटलां बाह्य साधनोनी गेरहाजरीमा ज्यारे चरितनायकनी कृतिओ ज आंतरिक साधनरूपे विद्यमान होय अने ते पण एक, बे के पांच नहि किन्तु संख्याबद्ध कृतिओ. त्यारे तो संशोधनपद्धति विनानुं अने आधार विनानुं जेटलं लखाण होय ते सत्यना जिज्ञासुने केमे करी संतोष न आपे. डा (ख) अत्यार सुधीमां जे काइ लखायुं छे तेमां केटलीक भ्रांतिओ देखाय छे. खास करी उपाध्यायजीना नामे चडेली कृतिओना विषयमां. जे जे लेखके तेओनी कृतिओ तरीके जे जे ग्रंथोनां नाम नोंध्यां छे ते बधी कृतिओ ते ते लेखके जोइ होय तेम नथी. आथी अन्य जसविजयनी कृति समान नामने कारणे उपाध्यायजीने नामे चडी गइ छे. अने कोइ स्थळे तो एक ज कृतिना बे नाम होय त्यां बे नामने कारणे बे कृतिओ नोंधाइ गइ छे. क्या य वळी एक ज ग्रन्थनां पानां आडां अवळां थवाने कारणे पुस्तकभंडा MPSC-- SGAROSAAMSANSAR ॥९॥ For Private Personal Use Only wasnainelorery.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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