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________________ ग्रन्थ प्राचीन ग्रंथोमा जे जे वस्तु छुटी छुटी वाचकने मळी शके ते बधी वस्तु आ एक ज ग्रंथमा एकसामटी व्यवस्थित रीते गोठवायेली परिचय 15 जोवा मळी शके छे. ते उपरांत जे वात प्राचीन ग्रंथोमा सिद्धान्तरूपे कहेवामां आवी होय तेने पण घणी वार उपाध्यायजीए तर्कनी ॥ ७ ॥ कसोटीए चडावीने ज कहेली छे. अनेक जातना शास्त्रोनो अभ्यासी कोइ ग्रंथकार ज्यारे एक खास विषय उपर लखे त्यारे पण तेना लखाणमा तेनुं सर्वदेशीय अने व्यापक ज्ञान जाणे अजाणे उतर्या विना न रहे ए जाणीतो नियम छे. उपाध्यायजीना संबंधमां पण तेम ज छे. आ ग्रंथ छे तो फक्त गुरुतत्त्वना विषयने लगतो, पण तेना निरूपणमां तर्कशास्त्रनी झीणवट, दार्शनिक ग्रंथोनी शंकासमाधानशैली, सैद्धान्तिक ग्रन्थोनी प्रसन्न छतां गंभीर शैली, काव्यशास्त्रनो कवितागुण, अलंकारशास्त्रनी उपमाचातुरी, व्याकरणशा स्वनी शब्दशुद्धि, छन्दःशास्त्रनी उपयुक्त छन्दोरचना, नयशास्त्रनी पृथक्करणपद्धति अने आगमिक प्रकरणोनी भंगज्ञानशैली ए बधु एकी ४ साथे वाचकोने जोवा मळे छे. अने जो वाचकनी दृष्टि उघडी होय तो ते एकाएक एम कही उठे के 'आ ग्रंथमो लेखक अनेक 8 शास्त्रो पी गएल होवो जोइए.' । प्रस्तुत ग्रंथर्नु महत्त्व ए अधिकारनी बाबत छे. जेओ शास्त्रना, तेमांए धर्मशास्त्रना, अने धर्मशास्त्रमा पण चरणकरणानुयोग| विषयना रसिया होय तेओ ज प्रस्तुत ग्रंथना अधिकारी कहेवाय. जेओ आवा अधिकारी हशे तेओने माटे आ ग्रंथ करतां वधारे कीमती वस्तु आ कीमती दुनियामां क्याइ पण मळवानी नथी. ते उपरांत आ ग्रंथर्नु महत्त्व ऐतिहासिक दृष्टिए पण घणुं ज छे. आत ग्रंथमा जे पार्श्वस्थ आदि पांच कुगुरुओर्नु वर्णन छे अने तेने लगतां केटलांक नियमनो सूचव्यां छे, तेओना व्यहारोना जे वर्णनो आप्यां छे अने जे गच्छांतरपरिपाटीनुं प्रकरण आप्यु छे, तेम ज जे प्रायश्चित्तविधाननी परिपाटी आपी छे, ते बधुं जैन संघना इति Jain Educ a tional For Private & Personal use only Mayainelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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