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________________ Jain Education International सिट्टी य धम्मरत्तो, धणमित्ता सुयणकमलवणमित्तो । भजा तस्स धणसिरी, सिरी व वररूवलावण्णा ॥ २ ॥ ताणं जाओ पुत्तो, बहुओवाईय एहि सुपवित्तो । संजणियजणचमक्को, तणुप्पहापडलचिच्चिक्को ॥ ३ ॥ जं जाओ इह रिद्धे, कुलम्मि हे जाय ! तं तुह सुजायं। भण्णइ जणेण तेणं, नाम कयं से सुजाओ ति ॥ ४ ॥ पडिपुण्णं गोवंगो, निरुवमलवणिमसुरूवरूवधरो । सो सव्वकलाकुसलो, कमेण तरुणत्तमणुपत्तो ॥ ५ ॥ कईयावि पवितो, जिणथुइपूयाहि वाणिपाणितलं । गुरुपयकमलं विमलं, कया वि भ्रमरु व्व सेवंतो ॥ ६ ॥ काहे वि य जिणपवयणपभावणं पावणं पुण कुणंतो। सवणपुडेहिं पियंतो, कयाइ जिणसमयअमयरसं ॥ ७ ॥ ललिएहिं मणहरेहिं, सहिययहिययंगमेहि भणिएहिं । नयरे नयरोहिल्ले, कस्स न सो कासि तोसभरं ॥ ८ ॥ इत्तो तत्थेव पिरंगुनामिया धम्मघोसमंतिपिया । पेसणपहियाउ चिरागयाउ तजेइ दासीओ ॥ ९ ॥ ताओ भणति सामिणि !, मा कुप्पसु अम्ह जयअपडिरूवं । दहुं सुजायरूवं कस्स न मोहिजए हिययं १ ॥ १० ॥ सा पडिभणइ हलाओ !, जया स गच्छज पणेण मग्गेण । ताहे मम साहिजह, तं सुहयं जेण पिच्छामि ॥ ११ ॥ गुणिजणअवयंसवयंसपरिगयं तं कयाइ तम्मि पहे । जंतं दासीकहियं, नियइ पियंगू सवत्तिजुया ॥ १२ ॥ वम्महरूवमडप्फरभंजणपषणं निएवि तं एसा । पभणइ धन्ना स च्चिय, नारी जीसे वरो एसो ।। १३ ।। काउं सुजायवेसं, अइसाइ कया विसा अभिरमेइ । अन्नाण सवत्तीणं, मज्झे तव्वयणचिट्ठाहिं ॥ १४ ॥ इत्तो पत्तो मंती, गिहदारं निजणं ति कलिऊण । अवसप्पिऊण सणियं, कवाडछिद्देण पिच्छेइ ।। १५ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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