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________________ अमरनियरपुज्ज वासवत्तं पवितं, मयलभरहरज्जं भूरिभोगेहि सज्ज । हलहरनिवइत्तं जं इहं केसवत्तं, कयभुवणचमकं धम्मलीला इयंतं ॥ ५॥ रहसवसनमंतुद्दामदेविंदविंदप्पणयमसमसुक्ख जं च तित्थाहिवत्त । अवरमवि पसत्थं पाणिणो जं लहंते, तमिहफलमसेसं धम्मकप्पडुमस्स ॥ ६ ॥ तं सोउ जंपइ दिओ, सच्चमिणं किंतु कहसु पसिऊण । कस्स सयासे एसो, धम्मो मे गिहियचु त्ति ? ॥७॥ सो पडिभणेइ मिट्ट, भुंजेयत्वं सुहं च सोयव्वं । लोयप्पिओ य अप्पा, कायव्यो इय पए तिहि ॥ ८॥ जो सम्म अवबुज्झइ, अणुचिट्ठइ तस्स पायमूलम्मि । गिहिज्ज तुमं धम्मं, भद्दपयं भद्द ! लहु लहिसि ॥ ९ ॥ को पुण एसिं अत्यु त्ति पुच्छिओ कहइ धम्मपाढी वि । भो भ६ ! विमलमइणो, परमत्थं एस बुज्झति ॥ १० ॥ अह सुद्धधम्महेउं, दंसणिणो बहुविहे वि पुच्छंतो । एगम्मि सन्निवेसे, समागओ भिक्खवेलाए ॥ ११ ॥ ओयरिओ मढियाए, एगस्स चत्तलिंगधारिस्स । होसु अतिहि ति तं ठविय, अप्पणा सो गओ मिक्ख ॥ १२ ॥ गहिउँ खणेण भिक्ख, सो पत्तो तो दुवेवि ते भुत्ता । समयम्मि धम्मतत्त, दिएण पुट्ठो कहइ लिंगी ।। १३ ॥ भद्द ! हइ सोमगुरुणो, अम्हे जससुजसनामया सीसा । उवइ8 णो तत्तं, मिट्ठ भुतवमिच्चाइ ।। १४ ।। न य अत्थो परिकहिओ, अचिरेण गओ गुरू य परलोयं । तो हं नियबुद्धीए, इय आराहेभि गुरुवयणं ।। १५॥ मंतोसहमाईहिं, विहिओ मे लोगवल्लहो अप्पा । पावेमि मिट्ठमन्नं, इह मढियाए सुवेमि सुहं ॥ १६ ॥ in Education For Private Personal Use Only ainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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