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पगती एस दुमाणं० गाहा ॥ ३७॥ जहा दुमा रितुविसेसेण पुफेति न भमरट्ठा तहा
किण्णु गिही रंधंती समणाणं कारणा सुविहियाणं?। मा समणा भगवंतो किलामएज्जा अणाहारा ॥ ३८॥ कंतारे दुब्भिक्खे आयके वा महई समुप्पण्णे। रत्तिं समणसुविहिया सव्वाहारं ण भुंजंति ॥ ३९ ॥ अह कीस पुण गिहत्था रत्तिं आयरतरेण रंधंति ?। समणेहिं सुविहिएहिं चउव्विहाहारविरएहिं ॥४०॥ अत्थि बहुगाम-देसा समणा जत्थ ण उवेंति ण वसंति । तत्थ वि रंधति गिही पगती एसा गिहत्थाणं ॥४१॥ पगती एस गिहीणं जं गिहिणो गाम-णगर-णिगमेसुं। रंधति अप्पणो परियणस्स कालेण अट्टाए ॥ ४२ ॥ ऍत्थ य समणसुविहिया परकड-परनिट्टियं विगयधूमं । आहारं एसंती जोगाणं साहणहाए ॥४३॥ णवकोडीपरिसुद्धं उग्गम-उप्पायणेसणासुद्धं।
छहाणरक्खणहा अहिंसअणुपालणट्ठाए ६॥४४॥ १ कारणा अहासमयं खं० वी० सा०॥ २ महया खं० ॥ ३ गाम-नगरा समणा खं० वी० सा. वृद्धविवरणे च॥ ४ तत्थ समणा सुविहिया पर वृद्धविवरणे । तत्थ समणा तवस्सी पर खं० वी० सा. हाटी० ॥ ५ हरिभद्रपादैः टीकायाम् | "इयं च किल भिन्नकर्तृकी" इति निर्दिष्टमस्तीति तेषामभिप्रायेणेयं गाथा न नियुक्तिसत्का। चूर्णि-वृद्धविवरणाभिप्रायेण तु नेयमन्य| कर्तृकीति नियुक्तिगाथेयम् ॥
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