SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | दसम णिजुतिचु नदीकूलं भित्त्वा कुवलयमिवोत्पाट्य सुतरून् , मदोद्वत्तान् हत्वा कर-चरण-दन्तैः प्रतिगजान् । जरां प्राप्याऽनायर्या तरुणिजनविद्वेषणकरी, स एवायं नागः सहति कलभेभ्यः परिभवम् ॥१॥ सभिक्खु अज्झयणं ण्णिजयं दसकालियसुत्तं पढमो उद्देसो ॥२३०॥ पसंसाए जहा-सप्पुरिसो सजणो। अत्थित्ते जधा—सभावो एस । गतो दव्वसगारो। सगारोवयुत्तो जीवो भावसगारो॥ निद्देस पसंसाएं य वट्टमाणेणं अधिगारो ॥१॥॥२३०॥ निद्देस पसंसाए० गाधापच्छद्धं । एतम्मि दसमज्झयणे निद्देस पसंसाए [य] वट्टमाणेण अधिकारो * ॥१॥ २३० ॥ कहं ? जेण जे भावा दसकालियसुत्ते करणिज वण्णित जिणेहिं । तेसिं समाणणम्मी जो भिक्खू इति भवति स भिक्खू ॥२॥२३१॥ जे भावा दसकालियसुत्ते० [गाधा। जे भावा दसकालियसुत्ते] करणिज्जा इति वण्णिता जिणेहिं तेसिं समाणणम्मि कते ततो [जो] भिक्खू [इति] एवं भवति, जेण एते गुणा समाणिता स ॥२३०॥ १ ए अधिकारो एत्थ अज्झयणे खं० वी० पु० सा० हाटी०॥ २ एत्थ दव्वसगारो मूलादर्शे ॥ ३ दसवेयालियम्मि कर खं० वी० पु० सा. वृद्ध० हाटी० ॥ ४ सण्णिय वृद्ध० ॥ ५ समाणणम्मी सो-भिक्खू भण्णइ स भिक्खू वृद्ध । समावणम्मी भिक्खू इइ भण्णइ स भिक्खू हाटी। समाणणम्मी जो भिक्खू ते (त्ति) भन्नइ स भिक्खू खं० । समाणणम्मि जो भिक्खू इइ भन्नइ स भिक्खू वी० । समाणणम्मि ति जो भिक्खू भन्नइ स भिक्खू सा० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600152
Book TitleDasakaliya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherPrakrut Granth Parishad
Publication Year1973
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy