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णिज
पंचम
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पिंडेसण|ज्झयणं | पढमो
उद्देसो
१५६. त भवे भत्त-पाणं तु संजताण अकप्पितं । णिजुयं
देंतियं पडियाइक्खे ण मे कप्पति तारिसं ॥ ७४ ॥ दसका- १५६. तं भवे० [सिलोगो] | देतियं पडियाइक्खे० ॥ ७४ ॥ निक्खित्ताधिगारिगमेवलियसुत्तं
१५७. असणं पाणगं वा वि खादिमं सादिमं तहा। ॥११५॥
__अगणिम्मि होज्ज णिक्खित्तं तं च ओसक्किया दए ॥ ७५ ॥ १५७. असणं० सिलोगो । ओसक्किय उम्मुयाणि ओसारेऊण, मा ओदणो डज्झिहिति उवधुप्पिधिति वा किंचि । तहेव सेसं ॥ ७५ ॥ समाणाधिकारमेवेदमवि१५८. असणं पाणगं वा वि खादिम सादिमं तहा।
अगणिम्मि होज निक्खित्तं तं च उज्जालिया दए ॥ ७६ ॥ १५८. असणं० सिलोगो । उजालिय कलिंच-कुतलगादीहि । उस्सिक्कणुज्जलणविसेसो-जलंताण चेव २० उम्मुयाणं विसेसुज्जालणट्ठमुप्पुंजणं उस्सिक्कणं, बहुविज्झातस्स तिणादीहिं उज्जालणं । सेसं जहा पुव्वं ॥ ७६ ॥
तम्मि चेवाधिकारे भण्णति१५९. असणं पाणगं वा वि खादिम सादिमं तहा ।
अगणिम्मि होज निक्खित्तं तं चै विज्झविया दए ॥ ७७ ॥ १ दृश्यतां पत्रं ११४-२ टिप्पणी १४ ॥ २ अयं सूत्रश्लोकः वृद्ध० नास्ति ॥ ३ च निव्वाविया दए वृद्ध । खं १-२-३-४ शु० हाटी० च सङ्ग्रहणीक्वेषु मिव्वाविया पदमेव दृश्यते ॥
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॥११५॥
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