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________________ सुकुमाल-कोमलतलेहिं अभंगण-परिमद्दणु-व्वलण-करणगुण-निम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पटेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं जिअपरिस्समेहिं पुरिसेहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउविहाए सुहपरिकम्मणाए संबाहणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ ॥६१॥ ६२. पडिनिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणि-रयण-कुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवंसि नाणा-मणि-रयण-भत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहनिसण्णे पुप्फोदएहि अ गंधोदएहि अ उण्होदएहि अ SAiRELEASES. सुहोदएहि अ सुद्धोदएहि अ कल्लाण-करण-पवर-मजणविहीए मज्जिए । तत्थ कोउअसएहिं बहुविहेहिं, कल्लाणग-पवर-मज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमालगंधकासाइअ-लूहिअंगे, अहय-सुमहग्घ-दूसरयण-सुसंवुडे, सरस-सुरभि-गोसीसचंदणा-णुलित्तगत्ते, सुइमाला-वण्णग-विलेवणे, आविद्धमणिसुवण्णे कप्पिय-हार-दहार-तिसरय-पालंय-पलंयमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे, पिणद्धगेविजे, अंगुलिज्जग-ललिय-कयाभरणे, वरकडगतुडिअ-थंभिअ-भुए, अहिअरूव-सस्सिरीए, कुंडलुजोइ-आणणे, मउड-दित्तसिरए हारुत्थय-सुकयरइअ-वच्छे मुद्दिआपिंगलंगुलिए, पालंबपलंबमाण-सुकय-पडउत्तरिजे नाणामणि-कणग-रयण-विमल-महरिह-निउणोवचिअ-मिसिमिसिंत-विरइअ-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-आविद्धवीरवलए, किं बहुणा ? कप्परुक्खए विव अलंकिय-विभूसिए नरिंदे, सकोरिंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं सेयवर-चामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं मंगलजयसह कयालोए - अन-मणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिअ-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद्दनगर-निमम-सिद्धि-संणावई-सत्यवाह-दूअ-संधिवाल-सद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए इव गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्व पिथदसणे, नरवई नरिंदे मरवसहे नरसीहे अब्भहिय-रायतेय-लच्छीए दिप्पमाणे मजणघराओ पडिनिक्खमइ ॥६॥ ६३. मज्जणघराओ जा || पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिओ उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे निसीअइ ॥६३॥ (3) | १०८ Jain Education Man www.jainelibrary.oru
SR No.600151
Book TitleParyushan na 4 thi 7 ma Divas na Vyakhyano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitshekharsuri
PublisherAjitshekharvijay
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & Paryushan
File Size16 MB
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