________________
रायपसेण| इय सुत्तनो
सार
॥१४२॥
एम थतां राजा पएसीना शरीरमां तीव्र वसमी वेदना ऊपजी अने विषम पित्तज्वरन जोर व्यापतां, नहि सही शकाय तेवी भारे
मार्यों गए. | बळतरा थवा लागी.
लो पएसी [२०४] राजा तो समजी गयो के पोते राणीना कावत्राथी ठगायो छे, छतां तेणे राणी उपर लेश पण रोष न आणतां पाथरो पोष
क्षोभ पामधशाळा तरफ जवानो मनसुबो कर्यो. त्यां जइ तेने पंजी प्रमार्जी तथा शौचनी अने लघुशंकानी जग्याने तपासी पछी ते पूर्वाभिमुख
| तो नथी थइ डाभना संथारामां पल्यंकासने स्थिर बेठो अने हाथ जोडी माथु नमावी या प्रमाणे बोल्योः
पण पोताना अरहंत भगवंतोने नमस्कार.
धर्मने अने मारा धर्माचार्य अने धर्मोपदेशक केशी कुमारश्रमणने नमस्कार. अहीं रही तेमने वंदन करता मने भगवंत केशी कुमारजी जुओ,
धर्माचार्यने हुं तेमने वारंवार चांदुं छु-नमुं हूं.
| संभारे छ में पहेलां ए मारा धर्माचार्य पासेथी स्थूल प्राणातिपात वगेरेना त्यागथी प्रतिज्ञाओ लीधी हती अने हमणां पण तेमनी ज साक्षीमां
पएसी मरीसर्व प्रकारना प्राणातिपात वगेरेना त्यागनो नियम लउं छु, क्रोध मान माया अने लोभ वगेरे कषायो छोडी दउंछु, नहि करवा | १० जेवु वधुं कार्य तजी दउ छु अने जीवतांसुधी चारे प्रकारना आहारनो पण परित्याग करुं छ.
देव थयो वळी, आ शरीर जे मने अत्यंत वहालुं छे तेने पण छेल्ला श्वासोच्छ्वास चालतां सुधी वोसरावी दउं छु.
एम करीने ते राजाए पोताना सारां नरसां बधां कार्योनी आलोचना करी, प्रतिक्रमणा करी अने तेणे कालमासे मरण आवतां समाधिपूर्वक काळ करी सौधर्मकल्पना सूर्याभविमानमा सूर्याभदेवरूपे अवतार मेळव्यो...
[२०५] ते त्यां हमणां ताजो उत्पन्न थपलो सूर्याभदेव पांच प्रकारनी पर्याप्तिओद्वारा शरीरादिकनी पूर्णता मेळवे छे, तो हे गौतम! आ सूर्याभदेवे ए दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवशक्ति अने दिव्य देवप्रभाव ए रीते मेळवेलां छे.
[२०६] हे भगवन् ! सूर्याभदेवनी जीवनस्थिति आयुष्यमर्यादा केटला काळ सुधीनी जणावेली छे ?
पाषाशा ५००गाकामयाभ
Jain Education temallina
For Private & Personel Use Only
wwilgainelibrary.org