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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥१३९॥ [१९५] पपसी बोल्योः हे भंते ! वनखंड, नृत्यशाळा, शेरडीनो वाढ अने खोळनो वाडो ए पहेलां पहेला तो रमणीय लागे छे अने पछी अरमणीय थइ जाय हे, ते वळी केम? [१९६] केशी बोल्या: पएसी! सांभळ. वनखंड ज्यांसुधी पत्रवाळो फूलवाळो फळवाळो अने घटादार छायावाळो लीलोछम होय छे त्यां सुधी रमणीय लागे छे अने ज्यारे तेनां पांदडो खरी पडे छे, फूलो करमाइ जाय छे, फळो नथी होता, तेम ते सूको खंख थइ जाय छे, त्यारे बीहामणो लागे छे. १९७] नृत्यशाळामां ज्यारे नाच चालतो होय, गाणां गवाता होय, वाजां वागतां होय अने लोको हसता रमता होय त्यारे ते रमणीय लागे छे अने ज्यारे नाच बंध होय, गाणां न चालतां होय, वाजां न वागतां होय अने तेमा एक पण माणस न फरकतुं होय, त्यारे ते सूनकार स्थान जेवी बीहामणी जणाय छे. १९८] शेरडीना वाढमां चिंचोडा चालता होय, शेरडी पीलाती होय, लोको तेनो रस पीता होय. कोड तेने लेता होय वा देता। होय, त्यारे ते वाढ भयों भों-रमणीय लागे छे, पण ज्यारे तेमां चिंचोडा बंध होय, शेरडी न पीलाती होय, एक चकलु य न फरकतुं होय, त्यारे ते खावा धाय छे-अळखामणो दीसे छे. अंतरायकर्म लागशे.” (मा णं तुमे पुव्वं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविजासि ॥ इत्यादेर्ग्रन्थस्य अयं भावार्थः-पूर्वमन्येषां दात्रा भूत्वा सम्प्रति जैनधर्मप्रतिपत्त्या तेषामदात्रा न भवितव्यम् अस्माकमन्तरायस्य जिनधर्मापभ्राजनस्य च प्रसक्तेः” पृ० १४५) राजा पएसोने आ सूचना करी केशीकुमारजीए विशाळ भावनी जे समज आपी छे ते अतिमहत्त्वनी छे अने आजे आपणे एने अनुसरोए तो जैनधर्मनी प्रभावना थवा उपरांत समाजमां पण शांति पेदा करी शकीए. a l For Private Personal use only १५ Jain Education www.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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