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________________ रायपसेण इय सुत्तनो सार ॥१३८॥ हे पएसी ! तुं एम समजे छे त्यारे अत्यारसुधी मारी सामे ते जे प्रतिकूळ वर्तन चलाव्युं छे तेनी माफी माग्या विना नगरी भणी | पएसी जवाने आटलो बधो उतावळो केम थयो छे ? पोताना [१९२] राजा बोल्योः अविनयने हे भंते ! अत्यारसुधी हुं आपनी प्रतिकूळ वयों छु ए खरं पण ए विषे में एवो विचार कर्यो छे के आवती काले प्रभातनो पहोर सविनय थतांज मारा बधा परिवार साथे अहीं आवी आपने चंदन नमन करी में करेला आ अविनयनी विनयपूर्वक वारंवार माफी मागु. ५ आम कही राजा पपसी पोताने स्थाने पहोंची गयो अने सवार थतां ज ए राजा राजा कोणिकनी पेठे मोटा आडंबर साथे पांच | पहेलो सारो ११ अभिगमपूर्वक केशी श्रमण पासे आव्यो अने तेमने वांदी नमी पोताना अविनय संबंधी विशेष नम्रतापूर्वक क्षमा मागी. हतो हवे [१९३] केशी श्रमणे ए राजा परसीने तेनी राणी सूर्यकांताने तथा तेनी साथेनी मोटी सभाने धर्मदेशना कही संभळावी. जैन थइने [१९४] धर्मदेशना सांभळी पोताने स्थाने जवानी त्वरावाळा राजाने केशी कुमारे कधः अरमणीय हे पपसी! वनखंड, नृत्यशाळा, शेरडीनो वाढ अने खोळनो वाडो पहेलां पहेला तो रमणीय लागे छे पण पछी अरमणीय थइ |१०| न थतो जाय छे, तेम, तुं पहेलां रमणीय थइ पछी अरमणीय न थतो. ११७ कोई संतपुरुष पासे जतां जे अदब-मर्यादा साचववानी होय छे तेनुं नाम अभिगम छे. ११८ आ वाक्यनो आशय स्पष्ट करवा टीकाकार आ प्रमाणे जणावे छे: “ केशीकुमारजी राजा पएसीने कहे छे के हे राजन् ! तुं जैनधर्मानुगामी न हतो त्यारे बीजा लोकोने दान आपतो हतो. दाननी तारी आ प्रथा हवे पण तारे चालु राखवी उचित छे. अर्थात् जैन धर्मानुगामी थया पछी पण तुं पहेलां जेवो दानी हतो तेवोज हवे पण दानी रहे ए उचित छे. तात्पर्य ए के तुं पहेला जेवो रमणीय हतो | १२| तेवोग रमणीय हवे पछी पण रहेजे, पण अरमणीय न थतो. अरमणीय थईश-टुको दृष्टिवाळो थईश-तो जैनधर्मनी अपकीर्ति थशे अने अमोने Jain Education Semeal For Private & Personal use only wwjainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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