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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
कहेवा प्रमाणे लाकडामांथी अग्नि मेळववा लाकडाने तपासवा लाग्यो. लाकडाने चीरी, तेना नाना नाना कटका करी तपासी जोयु. तो तेमां अग्नि तो क्यांय न जोवामां आव्यो. तेथी अग्नि विना हुं रांधु शी रीते ? ए माटे ज आम अफसोसमां पडयो छु.
पछी तेओमाना ज कोइ दक्ष पुरुषे साथेना बीजा बधा भाइओने कहा के, तमे बधा नाही धोइने बलिकर्म करी तेयार थइने आवो, हुं हमणां ज रसोइ बनावी नाखु छुः
पछी ए दक्ष पुरुषे कुहाडो लई लाकडामांथी घसणियुं शर बनाव्यु अने प शरने अरणी साथे घसी अग्नि उपजावी अग्निने | संधुकीने ते बधाओनी रसोई करी नांखी. पटलामां नहावा धोवा गपला बधा साथीओ आवी पहोंच्या. सौ साथे जमी करीने चोक्ता थइ मेळा मळीने वातो करवा बेठा. रसोईनी वात नीकळतां पेला दक्ष पुरुषे पेला उदास थयेला साथीने को के, हे देवानुप्रिय ! अग्निने शोधवा माटे ते लाकडां फाडी फाडीने जोवानो प्रयास कर्यो तेथी एम जणाय छे के, तुं जड छे, मूढ छे अने तद्दन अज्ञान छे.
हे पपसी ! ए अग्निशोधक कठीयारानी पेठे ते पण जीवने शोधवा-जोवा-माटे शरीरने चीरी चीरीने जोवानुं पाणी वलोव्यु, तेथी तुं पण एना करतां कांइ ओछो मूढ नथी.
[१८३] पएसी बोल्यो
हे भंते ! तमारा जेवा शानी बुद्ध महामति विज्ञानी अने विनीत पुरुष आवो मोटी सभा वच्चे मारा पर आक्रोश करे, खीजाई | जाय अने मारी निर्भर्त्सना करे ए शुं ठीक कहेवाय ?
[१८४] केशी श्रमण बोल्या:
पएसी ! तने खबर छ के क्षत्रियपर्षदा गृहपतिपर्षदा ब्राह्मणपर्षदा अने ऋषिपर्षदा पम चार प्रकारनो पर्षदाओ छे. ए चारे पर्षदाओनी दंडनीतिने पण तुं क्या नथी जाणतो?
क्षत्रियपर्षदानो अपराध करनार कांतो पोताता हाथ पग गुमावे, माथु गुमावे अने कांतो जीवथी जाय.
पएसीतमे दक्ष थइने भर सभा बच्चे मारु आम अपमान करो छो? । केशी
सभाओ अने तेना नियमोने जाणे छे?
॥१३१॥
Jain Educat
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