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रायपसेण| इय सुत्तनो सार
॥१२२॥
आवतां तो मनुष्यलोकनां तेनां अल्पायुषी संबंधीओ मरी गयेलां होय छे, कारण के देवनी घडी पटले आपणां हजारो वर्ष अर्थात् | पनी एक घडीमां तो आपणी केटलीप पेढीओ बदलाई जाय छे, एटले घडी पछीय देवर्नु आवQ कल्पी लईए तोपण ए पना खरा संबंधीओने मळी शकतो नथी, प त्रीजु कारण छे.
चोथु कारण मनुष्य लोकनी माधु फाडी नाखे पवी भयंकर गंदकी छे. १ ए गंदकी उंचे पण "" चारसो पांचसो योजन सुधी फेलाय छे अने प पवी तीव होय छे के देव पने सही शकतो नथी. लांबां प्रीश रातदिवस थाय त्यारे देवोनो एक मास अने एवा बार मास बीते त्यारे देवोर्नु एक वरस थाय. ए प्रायस्त्रिंश देवोर्नु एवां दिव्य हजार वर्ष जेटलुं दीर्घ आयुष्य होय छे. ए देवो एम धारे छे के आपणे बे के प्रण रात आ दिव्य कामगुणोने भोगवी पछी आपणा मानवी सम्बन्धीओने समाचार आपवा जईशु" इत्यादि पृ० ३२७.
११० दीघनिकायमा जणावेलुं छे के-"देवोनी दृष्टिमां मनुष्यो अशुचि छे, दुर्गन्धी छे, जुगुप्सित छे. मनुष्यलोकनी दुर्गन्ध सो योजन ऊंचो जईने देवोने बाधा उपजावे छे." "योजनसतं खो राजन! मनुस्संगधो देवे उब्बाहति"-पृ० ३२५.
१११ नव योजन करतां बधारे दूरथी आवतां सगंध पुद्गलो आपोआप घ्राणेन्द्रियनो विषय थई शकता नथी एवो घ्राणेन्द्रियना विषयने लगतो जैनशास्त्रनो नियम छे. नव योजन करतां वधारे दूरथी जे पुद्गलो आवे छे तेमनो गन्ध अत्यन्त मन्द थई जाय छे अर्थात् प्राणेन्द्रिय तेने लई शकती नथी. आवो नियम छतां अहीं जे चारसे पांचसें योजन सुधी दुर्गन्ध जवानी वात कही छे तेनी संगति केम थाय ? आवो प्रश्न टीकाकारने पोताने थाय छे. अने तेनुं समाधान पण तेओ पोते ज पोतानो रीते शोधी काढे छ: “जो के नियम तो एवो ज छे तोपण जे पुद्गलो अतिउत्कट गन्धवाळा होय छे ते नव योजन सुधी पहोंचतां त्यां तेमने जे बीजां पुद्गलो मळे छे तेमां तेओ पोताना दुर्गन्धनो, पास बेसाडे छे अने प पास वेठेलां पुद्गलो बळी आगळ जई बीजां पुद्गलोमा पास बेसाडे छे, ए रौते उपर उपर पास बेसाडेलां पुद्गलो
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